धारणीय विकास की अवधारणा और चुनोती की रूपरेखा बनाएं।
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धारणीय विकास की अवधारणा और इसमें आने वाली चुनौतियों
Explanation:
धारणीय विकास की अवधारणा से हमारा अभिप्राय ऐसी अवधारणा से है जिसमें एक समाज के सभी भागों का कल्याण और विकास के बारे में सोचा जाता है। इसमें एक समाज के सभी पक्षों को जैसे, पर्यावरणीय आर्थिक तथा सामाजिक रूप से सक्षम बनाने की कोशिश की जाती है।
इसके सामने आने वाली चुनौतियों निम्नलिखित है:
1 .गरीबी और बेरोजगारी
गरीबी और बेरोजगारी एक समाज को आर्थिक रूप से सक्षम नहीं बनने देती।
2.जलवायु परिवर्तन
जैसे-जैसे प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, जलवायु में परिवर्तन होता जा रहा है, और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं खड़ी होने लगी हैं। यह हमारे समाज वह हमारे पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक है।
3.सामाजिक विभेद और भ्रष्टाचार
सामाजिक विभेद और भ्रष्टाचार एक समाज की नींव को हिलाने के लिए काफी होते हैं। सामाजिक विभेद से आपस में लोग मिलजुलकर नहीं रहते और भ्रष्टाचार समाज को अंदर से खोखला कर देता है। और समाज का विकास करने में सबसे ब डी बाधा खड़ी करता है।
Answer:
गत वर्ष सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वैश्विक धारणीय विकास लक्ष्य के 17 ऐसे पक्षों को अपनाने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई, जो अपने आप में 169 लक्ष्य रखते हैं। ये ही लक्ष्य इससे पहले मिलेनियम विकास लक्ष्य कहे जाते थे।वास्तव में धारणीय विकास संपूर्ण विश्व में मानवीय गरिमा, समृद्धि, जैव मंडल के संरक्षण तथा शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने से जुड़ा हुआ है।
पारस्परिक संबंध
भारत के लिए इस चुनौती को स्वीकार करना बहुत कठिन है। चूँकि इसमें भारत की मुख्य समस्याओं; जैसे स्वास्थ्य, खाद्यान्न, शहरों का बुनियादी विकास, ऊर्जा स्रोत, गरीबी, असमानता, पानी, स्वच्छता, जलवायु परिवर्तन, खपत एवं पारिस्थितिकी तंत्र को शामिल किया गया है, इसलिए यह भारत के लिए सामाजिक विकास का सुनहरा अवसर भी है।धारणीय विकास का ढांचा हालांकि परस्पर जटिल जरुरत है, परंतु यह कुछ विशेष लक्ष्यों की पूर्ति के लिए वरदान भी है। जैसे पीने के लिए स्वच्छ जल एवं स्वच्छता से स्वास्थ्य में सुधार होगा एवं पर्याप्त पोषण मिलेगा। इसी प्रकार उत्पादन एवं खपत में संतुलन होने से सामग्री एवं ऊर्जा की खपत में कमी आयेगी और इससे ग्रीन हाउस गैस का शमन होगा। साथ ही खपत एवं प्राकृतिक तंत्र में भी परस्पर संतुलन होने से स्थानीय पारिस्थितिकीय तंत्र सुधरेगा।
लक्ष्य पूर्ति में कठिनाईयां
नीति आयोग के पूर्व सीईओ के अनुसार धारणीय विकास के 12वें लक्ष्यों की पूर्ति ही नहीं हो सकी है, क्योंकि आँकडों और धन; दोनों की ही कमी रही है। अब 13वें लक्ष्यों को हासिल करना लगभग असंभव-सा लग रहा है।हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धारणीय विकास तो वैश्विक लक्ष्यों पर काम कर रहा है। इसमें संपूर्ण मानव जाति के कल्याण की बात की जा रही है। इसके लक्ष्य भारत की पंचवर्षीय योजनाओं से ही संबंद्ध लगते हैं। रही बात लक्ष्यों के समय पर पूरा होने की, तो इसके लिए पहले से इकट्ठे किए गये डाटा का उपयोग करके, नए संस्थान खोलकर तथा केन्द्र-राज्य संबंधों को बेहतर बनाकर कोशिश की जा सकती है।
धारणीय विकास एवं जलवायु परिवर्तन
दक्षिण एशिया के देशों में भारत अपनी विशाल जनसंख्या, स्थानीय पारिस्थितिकीय तंत्र एवं विशाल तटरेखा के कारण जलवायु परिवर्तन के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील है।भारत को बचाने के लिए हमें धारणीय विकास की रणनीति के अनुसार चलना ही होगा। जैसे धारणीय विकास में सन् 2030 तक गरीबी खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है। भारत में विश्व की लगभग 20 प्रतिशत गरीब जनता निवास करती है। जलवायु परिवर्तन के लिए गरीबी या जीवन-स्तर बहुत हद तक जिम्मेदार होता है। जीवन-स्तर को सुधारने का अर्थ है-स्वच्छता, स्वच्छ जल एवं ऊर्जा के स्रोत, खपत में कमी आदि। इन सबकी मदद से हम ग्लोबल वार्मिंग में कमी ला सकते हैं। भारत ने हाल ही में विश्व तापमान में बढ़ोत्तरी को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करने हेतु 2 अक्टूबर 2016 को पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। यद्यपि भारत के लिए इस लक्ष्य को पाना आसान नहीं होगा, परंतु प्रयास तो करने ही होंगे।
जलवायु परिवर्तन को रोकने के साथ-साथ जलवायु अनुकूलन के लिए भी माहौल तैयार करना भी धारणीय विकास का लक्ष्य है। भारत प्रायद्वीप में मानसून की अनिवार्यता के कारण यहाँ जलवायु परिवर्तन के भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करना बहुत कठिन है। मौसम की विश्वस्तरीय भविष्यवाणियां यहाँ विफल होती दिखाई पड़ती हैं। कभी-कभी किसी क्षेत्र में कम अवधि में बहुत अधिक बारिश से बाढ़ आती है, तो कहीं सूखा पड़ जाता है। हालांकि विश्व के अन्य भागों में भी मौसम की इस तरह की मार देखने में आ रही है, परंतु भारत इस समस्या से बहुत अधिक प्रभावित है। मौसम की अनियमितता से स्थानीय जनता कहीं बाढ़ की शिकार हो रही है, तो कहीं सूखे की, तो कहीं पीने के पानी और कहीं कृषि की। अभी मौसम भविष्यवाणी के जितने भी मॉडल हैं, वे यह बताने में असमर्थ हैं कि कौन-सा क्षेत्र सूखाग्रस्त रहेगा और कौन सा बाढ़ग्रस्त। ऐसी अवस्था में हमें धारणीय विकास का ही सहारा है। इसके माध्यम से नीति-निर्धारकों को ऐसा फ्रेमवर्क मिल सकता है, जिससे वे प्रत्येक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझते हुए उसका विकास कर सकें।
अन्य बाधाएं
धारणीय विकास को सैद्धांतिक रूप में तो अपना लिया गया है, परंतु व्यावहारिक स्तर पर इनके लक्ष्यों की संख्या एवं धनराशि की कमी जैसे कई मुद्दे सामने खड़े हैं। अंतरराष्ट्रीय विकास सहायता, सार्वजनिक एवं निजी निधियों, कर-ढांचे में बदलाव आदि से शायद भारत जैसे अन्य देश इन लक्ष्यों को पाने में आगे बढ़ते रहें।
’द हिंदू’ में सुजाता बयरवन के लेख पर आधारित