धोती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाय उपानह को नहि सामा।
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकिसों बसुधा अभिरामा।
सी
स पगा न सँगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसे केहि ग्रामा
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा।। prasang sahit bhavarth
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Answer:
प्रसंग : जब सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका पहुचते है I तो द्वारपाल उन्हे रोकता है और अंदर जाकर श्रीकृष्ण को सुदामा का वर्णन कुछ इस प्रकार बताता है -
भावार्थ: हे प्रभु ! द्वार पर एक ब्राम्हण आया है , जिसकी धोती फटी हुई है और पेरों मे जुते भी नही है | वह बहुत दुर्बल और असाह्य दिखाई दे रहा है और इस सृष्टी की सुंदरता देखकर चकितसा खडा हैI उसके सीर पर पगडी तक नही है ,पता नही किस गाव से आया है I दीनदयाल यानी आपका (श्रीकृष्णका ) धाम पुछ रहा है और अपना नाम सुदामा बता रहा है I
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Answer:
सुदामा श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र थे। ऐसा माना जाता है कि सुदामा ने कृष्ण से मिलने और उनके कर्मों में पूरी तरह से भाग लेने के लिए तैयार होने के लिए पृथ्वी पर जन्म लिया था। उन्हें भगवान विष्णु का सच्चा भक्त भी माना जाता है। सुदामा और कृष्ण की कहानी प्यार और दोस्ती के बारे में है जिसमें सिखाने के लिए एक सबक है।
Explanation:
प्रसंग : जब सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका जाते है I तो द्वारपाल उन्हे जाने नहीं देता और द्वार पर रोक देता है और अंदर जाकर श्रीकृष्ण को सुदामा का वर्णन कुछ इस तरह बताता है -
भावार्थ: हे प्रभु ! द्वार पर एक ब्राम्हण पधारे है , जिसकी धोती पूरी फटी हुई है और पेरों मे जुते और चप्पल भी नही है | वह बहुत दुर्बल और असाह्य प्रतीत दिखाई दे रहा है और इस सृष्टी की भव्य सुंदरता देखकर चकित सा खडा हैI उसके सीर पर पगडी भी नही है ,पता नही किस गाँव से आया है I दीनदयाल यानी आपका (श्रीकृष्णका ) धाम के बारे में पुछ रहा है और अपना नाम सुदामा कह रहा है I
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