'धातुरूप' कितने लिगों में एक समान रहते है?
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किसी वस्तु अथवा व्यक्ति के नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे-राम, सीता, पुस्तक, कलम इत्यादि। संज्ञा शब्दों के रूपों में तीनों लिंग (पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग) सभी विभक्तियाँ (प्रथमा से सम्बोधन तक) एवं तीनों वचन (एकवचन, द्विवचन, बहुवचन) होते हैं। जिन संज्ञा शब्दों के अन्त में स्वर हो उन्हें स्वरान्त (अजन्त) कहते हैं; जैसे-राम, रमा, पितृ, मधु इत्यादि और जिन संज्ञा शब्दों के अन्त में व्यंजन हो उन्हें व्यञ्जनान्त (हलन्त) कहते हैं; जैसे-चन्द्रमस, मरुत, राजन, महत् इत्यादि। नीचे पाठ्यक्रम में निर्धारित एवं अन्य महत्वपूर्ण शब्द रूप दिये जा रहे हैं-
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संस्कृत भाषा को लिखने के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाता है। अतः संस्कृत सीखने से पहले हमें देवनागरी लिपि के वर्णमाला का ज्ञान होना आवश्यक हो जाता है। यहाँ मैं आपको सबसे पहले वर्णमाला से परिचय करा रहा हूँ।
देवनागरी में दो प्रकार के वर्ण होते हैं।
1. स्वर वर्ण 2. व्यंजन वर्ण
स्वर वर्ण
अ इ उ ऋ ऌ ए ऐ ओ औ
ध्यातव्य- ए ऐ ओ औ को संयुक्त स्वर भी कहा जाता है,क्योंकि ये वर्ण दो स्वर के मेल से बनते हैं। संस्कृत में अ इ उ ऋ वर्णों का ह्रस्व, दीर्ध और प्लुत ये तीन भेद होते हैं। अतः व्याकरण में अ (अवर्ण) का अर्थ आ भी होता है। इसी प्रकार इ उ ऋ को भी समझना चाहिए।
व्यंजन वर्ण
क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह ये व्यंजन वर्ण हैं। पाणिनि ने 14 माहेश्वर सूत्रों में इन वर्णों को कहा है। वहाँ पर वर्णों के क्रम में थोड़ा सा परिवर्तन है। संस्कृत सीखने के इच्छुक लोगों को चाहिए कि वे माहेश्वर सूत्र को याद कर लें, ताकि संस्कृत व्याकरण सीखना आसान हो सके।
व्यंजन में स्वर वर्ण को जब मिलाया जाता है तब वह उच्चारण करने योग्य होता है। अनुस्वार तथा विसर्ग को अयोगवाह कहा जाता है। इसका प्रयोग ( लिखने तथा बोलने में ) केवल स्वर वर्णों के साथ ही होता है। दो व्यंजन वर्णों को आपस में मिलने पर एक संयुक्त व्यंजन का निर्माण होता है।