ध्वनि
अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन
वन में
मृदुल वसंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
हरे-हरे ये पात,
डालिया!, कलिया!, कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।
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