Hindi, asked by anilpandeysgrl78, 7 months ago

धन और धर्म के बीच कैसा संग्राम हुआ​

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Answered by Rajkumar5454
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Answer:

है। जो संसार को धारण कर रहा है और जिसे धारण करना संसार का कर्तव्य है, वह धर्म है, दूसरे रूप में कहें तो धर्म ही आचार है। वेद और वेदानुकूल स्मृतियों में सत्य बोलना और सत्कार्यो व सद्विचारों को रखते हुए व्यवहार करना ही आचार है। इसके साथ सत्य हमेशा जुड़ा रहने से इसे सदाचार भी कहा जाता है। समस्त मानवों में यह सदाचार समान होने से सार्वभौमिक मानव धर्म समान है। मनुष्य को जीने के लिए धन की आवश्यकता होती है। यजुर्वेद के एक मंत्र में कहा गया है कि-वयं स्थाम पतयो रयीणाम् अर्थात् हम धन ऐश्वर्यो के स्वामी हों। वेद में अनेक ऐसे मंत्र हैं जिनमें कहा गया है कि हम पुरुषार्थ करते हुए धन व ऐश्वर्य प्राप्त करें, जिससे घरों में धन-धान्य की कमी न रहे, परंतु यह भी कहा गया है कि हम पाप से प्राप्त धन को अपने पास से हटाएं, शुभ लक्ष्मी हमारे पास रहे और पाप से प्राप्त लक्ष्मी नष्ट हो जाए। धन प्राप्ति के लिए अपनाया गया साधन भी उत्तम होना चाहिए। बिना परिश्रम किए लूट, चोरी या भ्रष्टाचार से कमाया गया धन हितकारी नहीं है। यदि हम धर्मपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं तो धन की आवश्यकता सीमित होती है। धन हमें अपनी योग्यता-परिश्रम के बल पर ही प्राप्त करना चाहिए। आज संचार के अधिक साधन होने के कारण व बचपन से ही उचित संस्कार न मिलने के कारण हमारी मनोवृत्ति भौतिकता की ओर अग्रसर हो गई है और हम येन केन प्रकारेण धन प्राप्त करना चाहते हैं, परंतु धन की शुद्धता भी आवश्यक है, जिसके लिए साधनों की पवित्रता भी आवश्यक है।

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