धनयाभ भोहन को अऩना प्रनतद्वॊदी क्मों नहीॊ सभझता था?
Answers
Answer:
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कबीरदास के दोहों से लिया गया है। इस दोहे में कबीरदास सच्चा सुख और प्रिय परमात्मा की प्राप्ति के लिए अहंकार का त्याग करना आवश्यक बता रहे हैं। व्याख्या-जीव अर्थात् आत्मा को परमात्मा से दूर और विमुख करने वाला अहंकार अर्थात् ‘मैं’ का भाव है। कबीर कहते हैं कि जब उन्होंने अहंकार को त्याग दिया तो उनकी आत्मा को परम सुख प्राप्त हुआ क्योंकि अहंकार दूर होते ही उनका अपने प्रिय परमात्मा से मिलन हो गया। कबीर कहते हैं कि कोई चाहे कुछ भी कहे परन्तु अब उनके हृदय में उनके प्रियतम परमात्मा निवास कर रहे हैं और वह सब प्रकार से सन्तुष्ट हैं। विशेष- (i) आत्मा और परमात्मा एक हैं। अहंकार के रहते जीव स्वयं को परमात्मा से भिन्न समझता है और दु:खी रहता है। अहंकार का त्याग करने पर ही ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है। यह मत व्यक्त किया गया है। (ii) ‘मेरे हिय निज पीव’ कथन से आत्मा-परमात्मा की नित्य एकता का और इस भाव के अनुभव से प्राप्त होने वाले परम सुख की ओर संकेत किया गया है। (iii) भाषा सरल है, शैली भावात्मक है॥ (iv) ‘कोई कछु कहै’ में अनुप्रास