धर्म स्वरूप बदलने वाले की मंशा क्या होती है ?यदि धर्म के स्वरूप में बदलाव नहीं होगा तो समाज का स्वरूप कैसे होगा
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वे उसपर बेतहाशा भौंकने लगे । गाँव के बच्चे खेल रहे थे । कुत्तों की देखा-देखी गाँव के बच्चे भी पूरी दोपहर उसे छेड़ते
और तंग करते रहे । आश्चर्य की बात यह थी कि वह आदमी उन बच्चों को कुछ बोल नहीं रहा था । संयोग से किसी भले
आदमी ने गाँव के बच्चों को उसपर पत्थर फेंकते हुए देख लियाl
जब वह भला आदमी उस आदमी के करीब गया
उसके चेहरे पर मौजूद खोएपन के भाव के बावजूद उसे उस में गरिमा के चिह्न दिखे । 'यह आदमी पागल नहीं हो
सकता' - उसने सोचा l
गाँव के उस आगंतुक भले व्यक्ति ने उस आदमी से उसका नाम - पता पूछा, पर वह कोई उत्तर
नहीं दे सका ।
वह केवल इतना बोल पाया, “शायद मैं खो गया हूँ !'' यह सुनते ही गाँव के उस भले व्यक्ति ने निश्चय किया कि वे सब उसे 'खोया हुआ आदमी' कहकर बुलाएँगे।
खोया हुआ आदमी इतना खोया था, इतना खोया था कि उसकी पूरी स्मृति का लोप हो चुका था ।
उसके जहन से उसका नाम और पता पूरी तरह खो चुके थे ।
न उसे अपनी जाति पता थी, न अपना धर्म ।
खोए हुए आदमी की स्थिति भले आदमी ने यह देखाl
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