धरती की सी रीत है, सीत घाम ओ मेह ,जैसे परे सो सही रहे, त्यों रहीम यह देह। इस दोहे से क्या शिक्षा मिलती है
(क) सहनशीलता
(ख) धन जोड़ने की
(ग) फल खाने की
(घ) पानी पीने की
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(क) सहनशीलता
Explanation:
इस दोहे में रहीम दास जी ने धरती के साथ-साथ मनुष्य के शरीर की सहन शक्ति का वर्णन किया है। वह कहते हैं कि इस शरीर की सहने की शक्ति धरती समान है। जिस प्रकार धरती सर्दी-गर्मी वर्षा की विपरित परिस्थितियों को झेल लेती है। उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी जीवन में आने वाले सुख-दुःख को सहने की शक्ति रखता है।
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