धरती की-सी रीत है,सीत घाम औ मेह।जैसी परे सो सहि रहे,त्यों रहीम ये देह।।
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धरती की सी रीत है, सीत घाम औ मेह। जैसी परे सो सहि रहै, त्यों रहीम यह देह॥ अर्थ- इस दोहे में रहीम दास जी ने धरती के साथ-साथ मनुष्य के शरीर की सहन शक्ति का वर्णन किया है। ... उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी जीवन में आने वाले सुख-दुःख को सहने की शक्ति रखता है
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