धरती को-सी रीत है, सीत घाम औ मेह।
जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह।।5।।
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जैसी परे सो सहि रहै, त्यों रहीम यह देह॥ अर्थ- इस दोहे में रहीम दास जी ने धरती के साथ-साथ मनुष्य के शरीर की सहन शक्ति का वर्णन किया है। वह कहते हैं कि इस शरीर की सहने की शक्ति धरती समान है। जिस प्रकार धरती सर्दी-गर्मी वर्षा की विपरित परिस्थितियों को झेल लेती है
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