thumun pratyaya examples
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परंपरागत विचारकों ने जिन विभिन्न सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, उनमें पदसोपान प्रथम और आधारभूत सिद्धांत हैं । वस्तुतः पदसौपान संगठन के उस पिरामिड का निर्माण करता है जिसके आधार पर ही अन्य सिद्धांतों की कल्पना की जा सकती है । मुने ने पदसोपान को ”विश्वव्यापी प्रघटना” कहा है । वेबर, फेयोल, गुलिक, उर्विक, मुने-रेले सभी पारंपरिक विचारकों ने इसे अपने सांगठनिक सिद्धांतों में महत्वपूर्ण स्थान दिया है ।
अंग्रेजी में पदसोपान के लिये हायरार्की शब्द का प्रयोग होता है । हायरार्की का डिक्शनरी अर्थ है- सत्ता या प्रस्थिति की विभिन्न श्रेणीयों की नीचे से ऊपर तक जमावट । उर्विक ने इसे ”स्केलर सिद्धांत” कहा है । पदसोपान का सामान्य अर्थ है, उच्च का निम्न पर शासन । पदसोपान का शाब्दिक अर्थ है पदों की सौपानिकता अर्थात ऊपर से नीचे तक पदों का व्यवस्थित क्रमबद्धीकरण ।
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इसलिए इस स्केलर पद्धति या श्रेणीबद्ध प्रक्रिया भी कहते हैं । फेयोल ने इसे सोपानात्मक श्रृंखला (Scalar Chain) कहा । इसमें ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की ओर प्रत्येक स्तर (सीढ़ी) से होकर ही गुजरना होता है इसलिए मूने एवं रेले ने इसे ”Scalar Process” (क्रमिक-प्रक्रिया या सीढीनुमा प्रक्रिया) कहा ।
क्रम का अर्थ है – चरणों की पंक्ति । यह चरण कार्य अनुसार नहीं अपितु सस्ता और उत्तरदायित्व की मात्रा के आधार पर उच्च और निम्न के रुप में जमाये जाते हैं । इसमें सत्ता के सूत्र ऊपर से नीचे की ओर तथा उत्तरदायित्व के सूत्र नीचे से ऊपर की तरफ जाते हैं । इससे प्रत्येक कर्मचारी अंतिम रुप से संगठन के प्रधान के प्रति उत्तरदायी हो जाता है ।
इस सिद्धांत में प्रत्येक व्यक्ति को यह ज्ञात रहता है कि वह किसके नियंत्रण में है और वह स्वयं किन अधीनस्थों का बॉस है । अतः पदसोपान एक स्तरबद्ध ढांचा है जिसमें सत्ता शिखर पर केन्द्रीत मानी जाती है और इस सत्ता को श्रेणीबद्ध रूप से विभिन्न स्तरों में बांटा जाता है । आदेश की एकता इस सिद्धांत की आत्मा है । उचित माध्यम द्वारा कार्य इसकी प्रमुख विशेषता है ।
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