toap Kavita ka pratipadhya spast kre
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तोप कविता का प्रतिपाद्य:
तोप कविता के माध्यम से कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि अत्याचारी शासकों का शासन अधिक समय तक नहीं चलता | जब लोग एकजुट होकर अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं तब अत्याचारियों को झुकना ही पड़ता है | जैसे तोप ने कितने ही शूरवीरों को अपना निशाना बनाकर उनका सफ़ाया कर दिया | लेकिन वर्तमान में वही तोप बच्चों के खेलने का साधन व पक्षियों का अड्डा बन गयी है | अब उसका मुँह बंद हो गया है अर्थात अब वह विनाशकारी नहीं है अब तो केवल उसे साल में दो बार यानि १५ अगस्त और २६ जनवरी को ही सजाया जाता है |
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