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तोप कविता का प्रतिपाद्य:
तोप कविता के माध्यम से कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि अत्याचारी शासकों का शासन अधिक समय तक नहीं चलता | जब लोग एकजुट होकर अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं तब अत्याचारियों को झुकना ही पड़ता है | जैसे तोप ने कितने ही शूरवीरों को अपना निशाना बनाकर उनका सफ़ाया कर दिया | लेकिन वर्तमान में वही तोप बच्चों के खेलने का साधन व पक्षियों का अड्डा बन गयी है | अब उसका मुँह बंद हो गया है अर्थात अब वह विनाशकारी नहीं है अब तो केवल उसे साल में दो बार यानि १५ अगस्त और २६ जनवरी को ही सजाया जाता है |
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प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ' स्पर्श भाग -2 ' से ली गई हैं। इसके कवि वीरेन डंगवाल हैं। इन पंक्तियों में कवि बताना चाहता है कि तोप का प्रयोग कहाँ हुआ था !
कवि कहते हैं कि सुबह और शाम को बहुत सारे व्यक्ति कंपनी के बाग़ में घूमने के लिए आते हैं। तब यह तोप उन्हें अपने बारे में बताती है कि मैं अपने ज़माने में बहुत ताकतवर थी। मैंने अच्छे अच्छे वीरों के चिथड़े उड़ा दिए थे। अर्थात उस समय तोप का डर हर इंसान को था।
कवि कहते हैं कि अब तोप की स्थिति बहुत बुरी है। छोटे बच्चे इस पर बैठ कर घुड़सवारी का खेल खेलते हैं। जब बच्चे इस पर नहीं खेल रहे होते तब चिड़ियाँ इस पर बैठ कर आपस में बातचीत करने लग जाती हैं। कभी - कभी शरारती चिड़ियाँ खासकर गौरैयें तोप के अंदर घुस जाती हैं। वो छोटी सी चिड़िया ऐसा करके हमें बताना चाहती हैं कि कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो एक ना एक दिन उसका भी अंत निश्चित होता है।
if means you have to write only summary and message you got from the poem