Hindi, asked by nitin124566, 10 months ago

Tum Nana poem by Mukesh Kundan Thomas​

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Answered by lavpratapsingh20
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Explanation:

गहरी नींद से अभी-अभी ही तो जागे थे वे लोग

बेफ़िक्र बेख़बर,बेख़ौफ़

और चल पड़ी थी ज़िन्दगी फिर एक बार और दिनों की

तरह

कुछ भूख, कुछ प्यास लिए, नयी उम्मीद नयी आस लिए।

किसे मालूम था गुज़री रात का सन्नाटा

सुबह के उजाले को रच चुका था काल के काले दिन में

धरती की कोख में कहीं हो रही थी हलचल

जिसकी लहरों में समाई थी,

सिसकियाँ,चीखें,हाहाकार और उथल-पुथल

चन्द पलों के झटकों ने गिरा दी ईटें घरों की

जोड़ा था जिन्हें हमने,उन्होंने एक एक करके

बर्बादी और तबाही की मनहूस चादर ओढ़े

ज़मीन के भीतर छुप कर चलने वाली ऐ बेरहम,ज़ालिम

लहरों

क्या तुमने तोड़ा है,गिराया है, हिलाया है कभी उन दिलों

की

जिनमें बसे हैं भयानक और नापाक इरादे

बस्तियाँ जलाने इंसानियत को मिटाने में जो तरस नहीं

खाते

तो फिर तुम क्यों बिन बताए आ जाती है

और सब कुछ उजाड़ कर चली जाती हो?

तुम्हारे काँपने से डर जाते हैं लोग,एक दूसरे से बिछड़

जाते हैं लोग

पर देख लेना देख लेना

इतने बेबस और लाचार भी नहीं के खड़े न हो सकें खुद

अपने पैरों पर हम

फिर जोड़ेंगे हम उन ईटों को,फिर बनायेंगे अपने घरौधे

हम

पोछ लेंगे आँसू, बाँट लेंगे दर्द हम, बनाएंगे ,सवांरेंगे फिर

अपना वतन हम

तुम शांत रहो, शांत रहे तुम्हारा आवेश

इस बस्ती में रूखी-सूखी के साथ सो रहे हैं लोग

तुम कभी न करना प्रवेश

कैसा भी क्यों न हो बहाना

तुम न आना, कभी न आना

मुकेश कुन्दन थॉमस

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