Hindi, asked by roshanmalviya000734, 6 months ago

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Answered by Anonymous
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जनवरी 20, 2015

ज्‍योत्‍सना सूरी

इकसवीं शताब्‍दी में, महिलाओं ने न सिर्फ धन अर्जन करने में अपनी भूमिका दर्ज कराई है बल्‍कि भावी संगठनों का निर्माण करते हुए अभिकर्ताओं का स्‍वरूप भी परिवर्तित किया है। हाल के वर्षों में, महिलाओं ने जीवन के हर क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है।

विगत तीन दशकों में, महिलाओं ने कॉरपोरेट जगत में महत्‍वपूर्ण सफलता हासिल की है, सामाजिक नैतिकता की बाध्‍यताओं को पार करते हुए घर तथा कार्यस्‍थल पर स्‍वयं को सफल उद्यमी एवं कार्यकारी व्‍यावसायिकों के रूप में साबित किया है। भारतीय महिला उद्यमी वर्ग ने नए उद्यमों को आरंभ करने एवं उनका सफलतापूर्वक संचालन करने में बेहतर कार्य-निष्‍पादन के कई उदाहरण प्रस्‍तुत किए हैं।

मैं इस बात में पूरी आस्‍था रखता हूं कि किसी भी कार्यदल के नेता के पास लक्ष्‍य के प्रति स्‍पष्‍ट दृष्‍टिकोण एवं रणनीति बनाने की क्षमता होनी चाहिए तथा लक्ष्‍य को हासिल करने हेतु कार्यदल को अति सावधानी एवं सतर्कतापूर्वक अपने प्रयासों को मूर्तरूप देने में प्रभावी नेतृत्‍व करना चाहिए। नेता को पक्षपात रहित एवं धैर्यवान होना चाहिए तथा उसकी क्षमताओं को समझते हुए एवं तदनुसार उत्‍तरदायित्‍वों का प्रत्‍यायोजन करते हुए जन प्रबंधन कौशल होना चाहिए। उसे अपने दृढ़ लक्ष्‍यों के प्रति अडिग रहना चाहिए। उसे अपने कर्मचारियों का मनोबल काफी बढ़ाकर रखना चाहिए और संगठन को संकट के भंवर से बाहर निकालना चाहिए।

मैंने हाल ही में फिक्‍की के अध्‍यक्ष का पदभार ग्रहण किया है और यह पहली बार है कि पर्यटन एवं आतिथ्‍य सत्‍कार सेक्‍टर का प्रतिनिधित्‍व किया जा रहा है। अध्‍यक्ष की अपनी मौजूदा हैसियत में, मैं पर्यटन को बढ़-चढ़कर बढ़ावा दे रहीं हूं। फिक्‍की में, हम लोग भारतीय उद्योग के संवर्धन हेतु अनेक समारोहों एवं पहलों के आयोजन में व्‍यस्‍त हैं। इनमें एक विषय है, जिसके प्रति मेरा काफी आत्‍मीय जुड़ाव है, -महिला उद्यमिता।

अप्रैल 2013 में, फिक्‍की महिला संगठन (एफ एल ओ) ने ''सभी विषमताओं के विरूद्ध उद्यमिता'' उपाधि प्राप्‍त 150 महिला उद्यमियों की कहानियों का एक संकलन प्रकाशित किया। ये कहानियां हमें यह बताती हैं कि कैसे इन महिलाओं ने संघर्ष करते हुए, बाधाओं से लड़ते हुए उद्यमिता के जगत, पुरूषों के अधिपत्‍य वाले उद्यमिता जगत, में अपनी महत्‍वपूर्ण उपस्‍थिति एवं स्‍थान दर्ज कराने में सफल हुई हैं। प्रत्‍येक कहानी महिलाओं के अटूट साहस, दृढ़ प्रतिज्ञा तथास्‍त्री शक्‍ति के उद्भूत सामर्थ्‍य को सही अर्थों में प्रतिबिम्‍बित करती है।

जब कभी भी मैं इन कहानियों को पढ़ती हूं, मैं काफी प्रेरित एवं अनुप्राणित महसूस करती हूं। ये कहानियां मुझे मेरी महिला उद्यमिता के रूप में प्रयासों का स्‍मरण कराती हैं। 10 अक्‍टूबर, 2006 को, मेरे जीवन में बड़ा भूचाल आ गया जब मेरे पति का स्‍वर्गवास हो गया। मेरे पति के गुजर जाने के 10 दिनों के भीतर मुझे इस कंपनी के अध्‍यक्ष व प्रबंध निदेशक का कार्यभार संभालना पड़ा। मेरे परिवार के लोग तथा मेरे इस कंपनी के कर्मचारीगण मेरी ओर टकटकी लगाए हुए थे और मुझे उनके लिए एक बड़े उत्‍तरदायित्‍व को निभाना था। मैं कार्य में इस कदर व्‍यस्‍त हो गई कि मेरे पास विलाप का भी समय नहीं था। मेरे लिए, प्रत्‍येक कदम पर सब कुछ नया था और सीखने वाला था। हालांकि आतिथ्‍य सत्‍कार की अवधारणाएं हमारे मन-मानस में स्‍वत: अंतर्निहित होती हैं, लेकिन इस संबंध में अपेक्षित पेशेवर प्रशिक्षण नहीं था। मैंने काम करते-करते इसे सीखा और अभी भी सीख रही हूं।

Answered by ankitakeshri740
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महिला उद्यमिता को किसी भी देश की आर्थिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। महिला उद्यमी न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाती हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ाती है। भारतीय समाज में महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के लिए सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक मोर्चों पर बदलाव लाने की जरूरत है।

कुछ तथ्य

आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 से ज्ञात होता है कि इस वर्ष के प्रारंभ में देश की स्टार्टअप कंपनियों में कम से कम एक महिला निदेशक वाली कंपनियों का हिस्सा 43 प्रतिशत ही था।

गौरतलब है कि सेबी के निर्देशानुसार सभी सूचीबद्ध कंपनियों को अपने निदेशक मंडल में कम से कम एक महिला को नियुक्त करना जरूरी है। इससे उनकी संख्या बढ़ी जरूर है, लेकिन इसे उनकी कारोबारी भागीदारी से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।

2019 के महिला उद्यमी सूचकांक के 57 देशों में भारत का स्थान 52वाँ रहा है।

महिला उद्यमियों को आगे लाने के लिए केवल आर्थिक मदद काफी नहीं होती। शिक्षा के बढ़ते आंकड़े भी इस स्थिति में अधिक बदलाव नहीं ला पाए हैं।

नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार भारत के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में से केवल 14 प्रतिशत प्रतिष्ठान ही महिलाओं द्वारा संचालित हैं। इनमें से अधिकतर उद्यम स्ववित्त पोषित और छोटे स्तर के हैं।

भागीदारी कैसे बढ़ाई जाए?

अगर सरकार की नीतियां सहयोगी बनें, महिलाओं को नवाचार के लिए उचित आर्थिक सहायता मिल सके, तो उनका क्षेत्र विस्तृत हो सकता है।

‘वूमन एंटरप्रेन्योरशिप इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार यदि महिलाओं में उद्यमशीलता को प्रोत्साहन दिया जाए, तो देश में पन्द्रह से सत्रह करोड़ रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं। इसके लिए आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य को बदलना जरूरी है।

समाज को रूढ़िवादी सोच से बाहर निकलना होगा। महिलाओं की नवाचार से जुड़ी सोच और प्रयासों को बढ़ावा देना होगा।

लैंगिक भेदभाव को दूर करना होगा।

स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देना होगा।

महिलाओं के लिए कौशल विकास केन्द्र खोलने होंगे।

आज भारतीय कार्यबल में प्रत्यक्ष श्रमशक्ति में 40 प्रतिशत और अप्रत्यक्ष श्रमशक्ति में 90 प्रतिशत योगदान महिलाओं का ही है। भारत को एक ऐसे विकास मॉडल की जरूरत है, जो अधिक से अधिक महिलाओं को उनकी योग्यता के अनुरूप उद्यमशीलता के लिए प्रोत्साहित करे।

विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित।

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