उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए
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क्रिकेट की दुनिया में भगवान का दर्जा पा चुके मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर का मानना है कि 22 वर्षों के क्रिकेट करियर में पाँच बार विश्वकप में असफलता के बाद अब जाकर मिली सफलता से उन्होंने जाना है कि उम्मीदों का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) वर्ल्ड रेडियो पर एक शो पर सचिन ने कहा क्रिकेट में अपने करियर की शुरुआत से लेकर पिछले 22 वर्षों तक मैंने सिर्फ विश्वकप जीतने का सपना देखा है और अब विश्वकप हासिल करने के बाद मेरे पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं। यह मेरे कैरियर का सबसे बेहतरीन समय है जिसका हर एक क्षण मेरे लिए कीमती है।
उन्होंने कहा यह मेरा छठा विश्वकप था। इससे पहले विश्वकप में हम कभी सेमीफाइनल में तो कभी फाइनल में आकर हार जाते थे जो बेहद दु:खदायी अनुभव था लेकिन मैंने अपने सपने को पूरा करने के लिए हमेशा कड़ी मेहनत की और आज मेरा सपना पूरा हो गया है, जिससे यह साफ है कि उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
भारत को 28 सालों बाद विश्वविजेता बनाने वाले 'कैप्टन कूल' महेंद्रसिंह धोनी ने इस शो में कहा हम पर विश्वकप जीतने का कोई दबाव नहीं था। हमें उम्मीद थी कि हम सभी मैचों में अच्छा प्रदर्शन करेंगे और लोग जानते हैं कि सभी खिलाड़ी बेहतरीन हैं और यह एक मौका था इसे साबित करने का खिलाड़ियों ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान अच्छा खेला और फाइनल में विपक्षी टीम को हराकर तय लक्ष्य का सफलतापूर्वक पीछा किया।
भारत के विश्वकप में जीत के लिए टीम इंडिया के धुरंधरों को तैयार करने वाले कोच गैरी कर्स्टन ने कहा मेरे और भारतीयों के लिए आईसीसी विश्वकप जितना एक सपने के पूरे होने जैसा है। मैंने कभी विश्वकप ट्राफी के साथ फोटो नहीं खिंचवाई और करीब दो साल पहले हमने कहा कि हम विश्वकप जीतना चाहते हैं और तभी से मैंने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रयास किया।
वहीं भारत के साथ विश्वकप फाइनल में पहुँची श्रीलंकाई टीम के बल्लेबाज एवं उपकप्तान माहेला जयवर्धने ने कहा भारत विश्वकप में जीतने का हकदार था। मैंने फाइनल में शतक बनाया लेकिन हम विकेट लेने में नाकाम रहे। हमारे 274 के स्कोर का पीछा करना काफी कठिन था लेकिन भारत ने उसे काफी आसानी से चेज किया। (वार्ता)
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