उपागमन एव निगमन रीति मे विवेध किजिए
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निगमन या अनुमान विधि
निगमन विधि आर्थिक विश्लेषण की सबसे पुरानी विधि है, जिसका आज भी अत्यधिक प्रयोग होता है । इस विधि के अन्तर्गत आर्थिक विश्व की सामान्य मान्यताओं अथवा स्वयंसिद्ध बातों को आधार मानकर तर्क की सहायता से निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इस विधि में तर्क को क्रम सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है । इस विधि को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। मनुष्य एक मरणशील प्राणी है' यह एक स्वयंसिद्ध सत्य है । मोहन भी एंक मनुष्य है, इस तर्क के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मोहन भी ‘मरणशील' है । अब हम इसे अर्थशास्त्र के उदाहरण द्वारा स्पष्ट करेंगे। यह एक स्वयंसिद्ध बात है कि सभी मनुष्यों का व्यवहार सामान्यतया विवेकशील होता है। इसका अर्थ यह है कि सभी उपभोक्ता अपनी सन्तुष्टि को अधिकतम करना चाहते हैं अथवा सभी उत्पादक अपने लाभ को अधिकतम करना चाहते हैं। जब हमें यह ज्ञात है कि सभी उपभोक्ता अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस सामान्य मान्यता अथवा स्वयंसिद्ध धारणा को आधार मानकर हम तर्क के आधर पर निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मोहन भी एक उपभोक्ता है और वह सन्तुष्टि को अधिकतम करना चाहता है । इस प्रकार स्पष्ट है कि निगमन विधि में हम सामान्य सत्यों के आधार पर तर्क द्वारा विशिष्ट सत्यों का पता लगाते हैं ।
आगमन विधि :
आगमन विधि निगमन विधि के ठीक विपरीत है । इस विधि में तर्क का क्रम विशिष्ट से सामान्य की ओर चलता है। इस विधि में बहुत-सी विशिष्ट घटनाओं अथवा तथ्यों का अवलोकन एवं अध्ययन करके प्रयोग के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं। जे.के. मेहता के शब्दों में, आगमन विधि तर्क की विधि है जिसमें हम बहुत-सी व्यक्तिगत आर्थिक घटनाओं के आधार पर कारणों और परिणामों के सामान्य सम्बन्ध स्थापित करते हैं।” आगमन विधि को हम एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। उदाहरणार्थ, हमने प्रयोग करके यह देखा कि किसी वस्तु का मूल्य गिरने पर 20 व्यक्ति उसे अधिक खरीदते हैं तो इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वस्तु का मूल्य गिरने पर उसकी माँग बढ़ जाती है । इस विधि में तर्क का क्रम विशेष से सामान्य की तरफ होता है ।
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