Computer Science, asked by maheshwarivanshika14, 3 months ago

उपपद विक्ति

मैं वह एकआँख से काना ही​

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Answered by kalivyasapalepu99
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कारक – जिन शब्दों का क्रिया के साथ साक्षात् संबंध होता है, उन्हें कारक कहते हैं (क्रियान्वयित्वं कारकत्वम्)। क्रिया तथा द्रव्य का संयोग करने वाले शब्दों को कारक कहते हैं। जिन शब्दों का क्रिया से साक्षात् संबंध नहीं होता, वे कारक नहीं कहलाते, जैसे – सम्बन्ध।

कारक के भेद – कारक के छः भेद होते हैं

विशेष – संबंध (Genetive) की गणना कारकों में नहीं होती, क्योंकि इसका क्रिया से सीधा संबंध नहीं होता। इसमें षष्ठी विभक्ति होती है और इसका चिह्न- का, के, की है।

विभक्ति – संज्ञा शब्दों के क्रिया के साथ संबंध को प्रकट करने के लिए जो प्रत्यय लगाया जाता है उसे कारक विभक्ति कहते हैं। सामान्यतः कर्ता कारक का बोध कराने के लिए प्रथमा विभक्ति, कर्म कारक का बोध कराने के लिए द्वितीया विभक्ति, करण कारक का बोध कराने के लिए तृतीया विभक्ति, सम्प्रदान कारक का बोध कराने के लिए चतुर्थी विभक्ति, अपादान कारक का बोध कराने के लिए पंचमी विभक्ति तथा अधिकरण कारक का बोध कराने के लिए सप्तमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।

कारक तथा विभक्ति में अन्तर – कारक विभक्ति का पर्यायवाची शब्द नहीं है क्योंकि कर्तृवाच्य में तो कर्ता कारक में प्रथमा विभक्ति होती है परंतु कर्मवाच्य तथा भाववाच्य में कर्ता कारक में तृतीय विभक्ति होती है। इसी प्रकार कर्तृवाच्य में कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है, किंतु कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है।

षष्ठी विभक्ति – एक संज्ञा शब्द का दूसरे संज्ञा शब्द से संबंध बताने में षष्ठी विभक्ति होती है। प्रमुख रूप से ये चार संबंध हैं

(क) स्व-स्वामिभाव संबंध, जैसे – साधु का धन (साधोः धनम्)।

(ख) जन्य-जनकभाव संबंध, जैसे – पिता का पुत्र (पितुः पुत्रः)।

(ग) अवयवावयविभाव संबंध, जैसे – पशु का पैर (पशोः पादः)।

(घ) स्थान्यादेशभाव संबंध, जैसे – ब्रू के स्थान पर वच् (ब्रुवोः वचिः)।

सम्बोधन कारक – उपर्युक्त विभक्तियों के अतिरिक्त एक सम्बोधन कारक होता है जिनका अंतर्भाव प्रथमा विभक्ति में कर लिया जाता है। सम्बोधन, एकवचन में प्रथमा विभक्ति के एकवचन के रूप में कहीं थोड़ा परिवर्तन हो जाता है, द्विवचन तथा बहुवचन के रूप पूर्णतया प्रथमा विभक्ति के समान चलते हैं।

उपपद विभक्ति – जो विभक्ति किसी पद विशेष (प्रायः अव्यय) के योग में आती है उसे उपपद विभक्ति कहते हैं। जैसे ‘सह’ के योग में तृतीया उपपद विभक्ति होती है।

कारक तथा उपपद विभक्ति – यदि कहीं कारक तथा उपपद विभक्ति दोनों भिन्न-भिन्न हों, तो वहाँ कारक विभक्ति को ही बलवान् मानकर उसका प्रयोग किया जाता है। जैसे ‘नमस्करोति’ क्रिया के कर्म में द्वितीया कारक विभक्ति का प्रयोग उचित है (नमस्करोति = नमः + करोति) भले ही नमः के योग में चतुर्थी उपपद विभक्ति का नियम रहता है।

उदाहरण – गुरुभ्यः नमः, गुरून् नमस्करोमि। प्रथम वाक्य में नम: के योग में गुरुभ्यः में चतुर्थी उपपद विभक्ति का प्रयोग उचित है किंतु द्वितीय वाक्य में नमस्करोति क्रिया के साथ कर्म (गुरून्) में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग उचित है।

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