उपराष्ट्रपति पर एक नोट लिखिए?
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भारत के संविधान का अनुच्छेद 63 यह उपबंध करता है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 64 और 89 यह उपबंध करते हैं कि भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा। संवैधानिक व्यवस्था में उपराष्ट्रपति पद का धारक कार्यपालिका का भाग है परंतु राज्य सभा के सभापति के रूप में वह संसद का भाग है। इस प्रकार उपराष्ट्रपति की दोहरी भूमिका होती है और वह दो अलग-अलग और पृथक पद धारण करता है।
दोहरी भूमिका
उपराष्ट्रपति का पद भारत के संविधान की एक अनूठी विशेषता है। विश्व के लोकतांत्रिक संविधान वाले अन्य देशों में इसके ठीक समतुल्य कोई पद विद्यमान नहीं है। राष्ट्रमंडल देशों की अन्य संसदीय शासन प्रणालियों में या आयरलैंड में ऐसा कोई पद नहीं है। विश्व के महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक देशों में संयुक्त राज्य अमरीका का संविधान की एकमात्र ऐसा संविधान ही जो ऐसे पद का उपबंध करता है। लेकिन भारत के उपराष्ट्रपति का पद यद्यपि संयुक्त राज्य अमरीका में उपराष्ट्रपति के पद के समरूप है लेकिन यह इस स्पष्ट कारण के चलते संयुक्त राज्य अमरीका में उपराष्ट्रपति के पद के बिल्कुल समान नहीं है कि अमरीका में राष्ट्रपतीय शासन प्रणाली है न कि भारत की तरह संसदीय शासन प्रणाली। और फिर भी भारत के संविधान निर्माताओं ने मूलत: ब्रिटिश संसदीय प्रणाली का अनुसरण करते हुए अमरीकी प्रणाली को अपनाने का निर्णय लिया और संयुक्त राज्य अमरीका के उपराष्ट्रपति के समान इस पर का उपबंध किया। भारत का उपराष्ट्रपति उच्च सदन की अध्यक्षता करेगा और कतिपय आकस्मिक स्थितियों में राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा। इस प्रकार, भारत के उपराष्ट्रपति को दोहरी सौंपी गई है, कार्यपालिका के दूसरे मुख्यिा के रूप में और संसद के उच्च सदन के पीठासीन अधिकारी के रूप में दोहरी भूमिका सौंपी गई है।
यह इन दो पदों के धारक पर निश्चित रूप से भारी-भरकम जिम्मेदारी डालता है। उसे दो ऐसे पदों के कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है जो भिन्न और पृथक हैं। सभापति अपने मन मस्तिष्क पर उपराष्ट्रपति की हैसियत से अर्जित ज्ञान का प्रभाव पड़ने नहीं दे सकते। उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए वह एसा कोई काम नहीं कर सकता। जो सभापति के रूप में उसके दायित्वों पर असर डाले। यह उल्लेखनीय है कि भारत में उपराष्ट्रपति के रूप में इस उच्च पद के पदधारियों ने इन दो भूमिकाओं में कार्य किया है और उन्हें पूरे देश से सम्मान और सराहना मिली है। वे सभी महान व्यक्ति रहे हैं। उन्होंने अद्वितीय प्रतिष्ठा के राज्य सभा के सभापति का पद ग्रहण किया है और इन सभी वर्षों के दौरान मर्यादा और गरिमा के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है।