उपर्युक्त पद्यांश की किन्हीं चार पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए
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शील और संतोष की सीमाओं में पिचकारियों से स्नेह का रंग उड़ाओ। चारों ओर उड़ते गुलाल से पूरा आकाश लाल हो गया है, रंग ही रंग बरस रहा है। लोक लाज को त्यागकर घूँघट के पट खुल गए हैं । हे प्रभु ! गिरिधर नागर आपके चरण कमलों पर आपकी यह दासी मीरा बलिहारी जाती है ।
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