उपसर्ग लगाकर लिजिा
क-दनि
अ- प्रसिद
ग- सामान्य
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Answer:
धात रूपों तथा धात ु ओु से निष् ं पन्न शब्दरूपों से पर्व
ू प्रयक्ुत होकर उनके अर्थ का
परिवर्तन करने वाले शब्दों को उपसर्ग कहते हैं—
उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते।
प्रहाराहार-सं
हार-विहार-परिहारवत।।
्
उपसर्गों के जड़ुने से पद का अर्थ बदल जाता है, यथा— हार शब्द का अर्थ
है— 'माला', परन्तु जब उसमें 'प्र' उपसर न्तु ्ग लगता है तो शब्द बनता है ‘प्रहार’
और उसका अर्थ होता है— मारना। इसी प्रकार 'आ' उपसर्ग लगने पर 'आहार'
बनता है, जिसका अर्थ है— भोजन। इसी प्रकार यदि 'हार' शब्द में 'सम' उपसर ् ्ग
जड़ता है तो 'स ु ं
हार' शब्द बनता है जिसका अर्थ है नष्ट करना, परन्तु इसी न्तु
शब्द में 'वि' उपसर्ग लगने पर 'विहार' शब्द बनता है जिसका अर्थ होता है—
घमूना-फिरना। इसी तरह 'परि' उपसर्ग जड़कर 'पर ु िहार' शब्द बनता है
जिसका अर्थ होता है— सधार कर
ु ना/त्याग करना। इस प्रकार हमने देखा कि
अलग-अलग उपसर्गों के जड़ुने से शब्दों के अर्थों में परिवर्तन आ जाता है।
उपसर्गों का स्वतं
त्र प्रयोग नहीं होता।
उपसर्गप्रयोगेण शब्दनिर्माणम—
् एकस्य पदस्य वाक्यप्रयोग:
1. प्र — प्रभवति, प्रकर:, प्रयत् ्ष न:, गङ्गा हिमालयात्
प्रतिष्ठा प्रभवति।
2. परा — पराजयते, पराभवति, सैनिक: शत्रून पराजयते।
्
3. अप — अपहरति, अपकरोति, चौर: धनम अपहर
् ति।
4. सम्— सं
स्करोति, स�च्छते, अध्यापक: छात्रं सत्रं ं
स्करोति।
उपसर्ग
षष्ठ अध्याय