उपसर्ग लगाकर लिखिए विचित्र
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उपसर्ग (Prefixes) की परिभाषा भेद और Examples
व्युत्पत्ति के आधार पर मुख्य रूप से शब्द के दो मूल रूप होते हैं, रूढ़ और यौगिक। रूढ़ शब्द किसी के मेल से नहीं बनते, ये स्वतंत्र होते हैं। लेकिन यौगिक शब्दों की रचना रूढ़ शब्द के आदि व अंत में जुड़ने वाले शब्दांशों से होती है। ये शब्दांश रूढ़ शब्द से मिलकर इसके अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं।
जैसे: श्रम से बने ये शब्द:
परि + श्रम = परिश्रम
परि + श्रमी = परिश्रमी
श्रम + इक = श्रमिक
श्रम + जीवी = श्रमजीवी
श्रम + शील = श्रमशील
इस प्रकार नए शब्दों की रचना होती है। यही ‘शब्द-रचना’ कहलाती है। शब्द-रचना के मुख्य तीन प्रकार हैं :
उपसर्ग
प्रत्यय
समास।
उपसर्ग (Prefix)
शब्दों के आदि में जुड़कर शब्दों के अर्थ में विशेषता लाने वाले शब्दांश ‘उपसर्ग’ कहलाते हैं। इन उपसर्गों का अलग से प्रयोग नहीं किया जा सकता अर्थात् स्वतंत्र रूप में इनका कोई विशेष महत्त्व नहीं होता। हिंदी में मुख्य रूप से संस्कृत तत्सम शब्द पाए जाते हैं। इसके अलावा हिंदी तथा उर्दू तत्सम शब्दों का भी प्रयोग होता है।
संस्कृत के उपसर्ग
उपसर्ग अर्थ शब्द रूप
अ (नहीं, अभाव, हीन, विपरीत) अखंड, अनाथ, अथाह, अधर्म, अदृश्य, अडिग, अचल, अलौकिक।
अन् (नहीं, अभाव) अनाचार, अनपढ़, अनादि, अनमोल, अनेक, अनावश्यक, अनिच्छा, अनुपस्थिति।
अधि (ऊपर, समीप, बड़ा) अधिकरण, अधिकार, अधिपति, अधिनायक।
अति (अधिक, ऊपर) अतिशय, अतिरिक्त, अतिक्रमण, अतिचार, अत्यधिक।
अनु (पीछे, समान) अनुकरण, अनुगामी, अनुकंपा, अनुशीलन, अनुराग, अनुज, अनुगमन।
अभि (तरफ, सामने, समीप) अभियोग, अभिनेता, अभिमान, अभिनव, अभिमुख।
अप (बुरा, हीन, अभाव, विपरीत) अपव्यय, अपकीर्ति, अपमान, अपयश, अपवाद, अपशब्द।