Hindi, asked by nargishdixit8, 1 day ago

उपयुक्त तुलसीदास- राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।। बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोहि।। बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।। भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्हीं। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।। मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।
explanation ​

Answers

Answered by manishroy6299833385
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Answer:

ye class 10th kshitij chapter 2 hai

Answered by deepak13157
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Answer:

इसपर परशुराम अपने फरसे की ओर देखते हुए कहते हैं कि शायद तुम मेरे स्वभाव के बारे में नहीं जानते हो। मैं अबतक बालक समझ कर तुम्हारा वध नहीं कर रहा हूँ। तुम मुझे किसी आम ऋषि की तरह निर्बल समझने की भूल कर रहे हो। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और सारा संसार मुझे क्षत्रिय कुल के विनाशक के रूप में जानता है। मैंने अपने भुजबल से इस पृथ्वी को कई बार क्षत्रियों से विहीन कर दिया था और मुझे भगवान शिव का वरदान प्राप्त है। मैंने सहस्रबाहु को बुरी तरह से मारा था। मेरे फरसे को गौर से देख लो। तुम तो अपने व्यवहार से उस गति को पहुँच जाओगे जिससे तुम्हारे माता पिता को असहनीय पीड़ा होगी। मेरे फरसे की गर्जना सुनकर ही गर्भवती स्त्रियों का गर्भपात हो जाता है।

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