Urja sankat par nibhand with chandrabindu
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विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष की खपत में लगभग तीन गुना वृध्दि के फलस्वरूप ऊर्जा संकट आज के युग की वास्तविकता है। इससे इंकार करना या इसकी उपेक्षा करना दोनों ही घातक सिध्द हो सकते हैं। संसार भर में ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधनों को विकसित राष्ट्र जैसे- जापान, अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, फ्रांस एवं इजरायल आदि विकल्प के रूप में द्रुतगति से अपना रहे हैं। ऊर्जा विकल्प की यह विश्वव्यापी चर्चा एवं उपयोजन निरर्थक नहीं है। ऊर्जा के वर्तमान साधन सीमित है। विश्व में 4 करोड़ 86 लाख 65 हजार टन कोयला भंडार है, गैस भंडार तो केवल 41 हजार मेगाटन है। चार-छह दशकों से ज्यादा ये संसाधन हमारा साथ देने वाले नहीं हैं, अत्यन्त खर्चीले हैं, पर्यावरण को बिगाड़ने वाले हैं और दूर-दराज के क्षेत्रों में उपलब्ध भी नहीं हैं। अत: घरेलू ईंधन हेतु गैर पारंपरिक साधनों का उपयोग ही एकमात्र विकल्प सिध्द हो सकता है।
21वीं शताब्दी के पहले पांच दशकों तक ये साधन हमारा साथ निभा दें तो गनीमत है। फिर क्या होगा? क्या हम इक्कीसवीं शताब्दी को एक अंधेरी, असहाय और आदिम युग की शताब्दी बनाना चाहते हैं? कोयले और पेट्रोल का भंडार न अक्षय है और न अनंत। उस दिन की कल्पना करें जब न गैस होगी न बिजली, न परमाणु ऊर्जा होगी न ताप। ये धड़धड़ाती डीजल और वाष्पचलित रेलगाड़ियां और मोटरें, कारखानों की धुंआ उगलती चिमनियां, इस्पात के बड़े-बड़े संस्थान और दुनिया भर की उत्पादक इकाइयां सब ठप हो जाएंगी। विकल्प की खोज न करेंगे तो आदिम युग, आदि मानव का गुफाओं वाला युग हमसे दूर नहीं होगा।
भारत सहित अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर यह गंभीर चिंता का विषय है कि वर्तमान ऊर्जा का विकल्प कैसा हो। हमारे वैकल्पिक साधन ऐसे होने चाहिए जो अनंत हों, अक्षय हों और कोयले तथा पेट्रोल की तरह बीच में ही साथ छोड़ने वाले न हों। इनके लगाने तथा रखरखाव का खर्च कम हो, पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर व्यय होने वाली विदेशी मुद्रा की बचत हो, जो राष्ट्रीय अर्थतंत्र को मजबूती दे सके। एक साथ इतनी सारी शर्तें पूरी करने वाले साधन न तो हमें विज्ञान दे सकता है और आधुनिक अर्थतंत्र। इसके लिए हमें प्रकृति की शरण में ही जाना होगा। फिर भी सूर्य की, पवन की, पानी की, धरती माता की और अग्नि तत्व की प्रतिष्ठा करनी होगी, उनकी परिक्रमा करनी होगी, उनकी अगवानी करनी होगी। फिर इक्कीसवीं शताब्दी तो क्या, आने वाली सैकड़ों शताब्दियां ऊर्जा संकट से मुक्त रह सकेंगी।
विकल्पों की इस श्रृंखला में सबसे पहले नजर जाती है, सूर्य पर, जो ऊर्जा का अनंत भंडार है। सूर्य से पृथ्वी तक पहुंचते-पहुंचते सूर्य ऊर्जा का लगभग 90 प्रतिशत अंश यों ही व्यर्थ चला जाता है। यह तो स्वयं सिध्द है कि धूप अपने आप में प्रदूषणरहित है और सबको समान रूप से सुलभ है। भारत का सौभाग्य है कि वर्ष में 250 से लेकर 320 दिनों तक सूर्य की भरपूर धूप हमें प्राप्त होती है।
सूर्य-ऊर्जा की दृष्टि से भारत सौभाग्यशाली है। हमें जितनी ऊर्जा की आवश्यकता है उससे 20 हजार गुना शक्ति सूर्यदेव हमें प्रदान करने की अनुकम्पा करता है। थार के रेगिस्तान के 100 वर्गमील के क्षेत्रफल पर सूर्य ऊर्जा इतनी पड़ती है जो पूरे देश को ऊर्जा आपूर्ति में सक्षम है। दिन में सूर्य चाहे 10 से 12 घंटे ही हमारे साथ रहे लेकिन विज्ञान का करिश्मा यह है कि सूर्य की ऊर्जा हमें चौबीसों घंटे यानी दिन हो या रात, किसी भी समय प्राप्त हो सकती है। इसमें न धुआं है, न धूल न अपशिष्ट पदार्थ है और न स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाला कोई तत्व। मजे की बात तो यह है कि विश्वभर में उपलब्ध संपूर्ण ईंधन को जलाने से जितनी ऊर्जा प्राप्त होती है उतनी सूर्य दस दिनों में ही प्रदान कर देता है। इसे यों भी कह सकते हैं कि सूर्य अन्य समस्त साधनों से प्राप्त ऊर्जा से 36 गुना ज्यादा ऊर्जा देने में सक्षम है जबकि वास्तविकता यह है कि सूर्य ऊर्जा का केवल 10 प्रतिशत भाग पृथ्वी पर आता है, 90 प्रतिशत वायुमंडल में ही रह जाता है।
21वीं शताब्दी के पहले पांच दशकों तक ये साधन हमारा साथ निभा दें तो गनीमत है। फिर क्या होगा? क्या हम इक्कीसवीं शताब्दी को एक अंधेरी, असहाय और आदिम युग की शताब्दी बनाना चाहते हैं? कोयले और पेट्रोल का भंडार न अक्षय है और न अनंत। उस दिन की कल्पना करें जब न गैस होगी न बिजली, न परमाणु ऊर्जा होगी न ताप। ये धड़धड़ाती डीजल और वाष्पचलित रेलगाड़ियां और मोटरें, कारखानों की धुंआ उगलती चिमनियां, इस्पात के बड़े-बड़े संस्थान और दुनिया भर की उत्पादक इकाइयां सब ठप हो जाएंगी। विकल्प की खोज न करेंगे तो आदिम युग, आदि मानव का गुफाओं वाला युग हमसे दूर नहीं होगा।
भारत सहित अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर यह गंभीर चिंता का विषय है कि वर्तमान ऊर्जा का विकल्प कैसा हो। हमारे वैकल्पिक साधन ऐसे होने चाहिए जो अनंत हों, अक्षय हों और कोयले तथा पेट्रोल की तरह बीच में ही साथ छोड़ने वाले न हों। इनके लगाने तथा रखरखाव का खर्च कम हो, पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर व्यय होने वाली विदेशी मुद्रा की बचत हो, जो राष्ट्रीय अर्थतंत्र को मजबूती दे सके। एक साथ इतनी सारी शर्तें पूरी करने वाले साधन न तो हमें विज्ञान दे सकता है और आधुनिक अर्थतंत्र। इसके लिए हमें प्रकृति की शरण में ही जाना होगा। फिर भी सूर्य की, पवन की, पानी की, धरती माता की और अग्नि तत्व की प्रतिष्ठा करनी होगी, उनकी परिक्रमा करनी होगी, उनकी अगवानी करनी होगी। फिर इक्कीसवीं शताब्दी तो क्या, आने वाली सैकड़ों शताब्दियां ऊर्जा संकट से मुक्त रह सकेंगी।
विकल्पों की इस श्रृंखला में सबसे पहले नजर जाती है, सूर्य पर, जो ऊर्जा का अनंत भंडार है। सूर्य से पृथ्वी तक पहुंचते-पहुंचते सूर्य ऊर्जा का लगभग 90 प्रतिशत अंश यों ही व्यर्थ चला जाता है। यह तो स्वयं सिध्द है कि धूप अपने आप में प्रदूषणरहित है और सबको समान रूप से सुलभ है। भारत का सौभाग्य है कि वर्ष में 250 से लेकर 320 दिनों तक सूर्य की भरपूर धूप हमें प्राप्त होती है।
सूर्य-ऊर्जा की दृष्टि से भारत सौभाग्यशाली है। हमें जितनी ऊर्जा की आवश्यकता है उससे 20 हजार गुना शक्ति सूर्यदेव हमें प्रदान करने की अनुकम्पा करता है। थार के रेगिस्तान के 100 वर्गमील के क्षेत्रफल पर सूर्य ऊर्जा इतनी पड़ती है जो पूरे देश को ऊर्जा आपूर्ति में सक्षम है। दिन में सूर्य चाहे 10 से 12 घंटे ही हमारे साथ रहे लेकिन विज्ञान का करिश्मा यह है कि सूर्य की ऊर्जा हमें चौबीसों घंटे यानी दिन हो या रात, किसी भी समय प्राप्त हो सकती है। इसमें न धुआं है, न धूल न अपशिष्ट पदार्थ है और न स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाला कोई तत्व। मजे की बात तो यह है कि विश्वभर में उपलब्ध संपूर्ण ईंधन को जलाने से जितनी ऊर्जा प्राप्त होती है उतनी सूर्य दस दिनों में ही प्रदान कर देता है। इसे यों भी कह सकते हैं कि सूर्य अन्य समस्त साधनों से प्राप्त ऊर्जा से 36 गुना ज्यादा ऊर्जा देने में सक्षम है जबकि वास्तविकता यह है कि सूर्य ऊर्जा का केवल 10 प्रतिशत भाग पृथ्वी पर आता है, 90 प्रतिशत वायुमंडल में ही रह जाता है।
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