Hindi, asked by mishraanish209, 5 months ago

उसने जाति और लिंग के आधार पर लोगों के भेदभाव और अनुचित व्यवहार को खत्म करने का काम किया। उन्हें महाराष्ट्र में सामाजिक सुधार आंदोलन का एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है।

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Answered by nileshkumarnl828
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Explanation:

सन 1867 ई. में बम्बई में प्रार्थना समाज की स्थापना की गई| महादेव गोविन्द रानाडे और रामकृष्ण भंडारकर इसके मुख्य संस्थापक थे| प्रार्थना समाज के नेता ब्रहम समाज से प्रभावित थे|उन्होंने जाति-प्रथा और छुआछुत के व्यवहार का विरोध किया| उन्होंने महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए कार्य किया और विधवा-पुनर्विवाह की वकालत की| रानाडे,जोकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भी संस्थापकों में से एक थे,ने 1887 ई. में इंडियन नेशनल सोशल कांफ्रेंस की स्थापना की जिसका उद्देश्य संपूर्ण भारत में सामाजिक सुधार के लिए प्रभावशाली तरीके से कार्य करना था| इस कांफ्रेंस का आयोजन भी प्रतिवर्ष सामाजिक समस्याओं पर चर्चा के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों के साथ ही होता था| रानाडे का मानना था कि सामाजिक सुधारों के बिना राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्र में उन्नति संभव नहीं है| वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के बड़े समर्थक थे और घोषित किया कि भारत जैसा विशाल देश तभी कोई उन्नति कर सकता है जब हिन्दू व मुस्लिम दोनों हाथ मिलाकर एक साथ आगे बढ़ें| पश्चिमी भारत के दो अन्य महान सुधारक गोपाल हरि देशमुख लोकहितवादी और ज्योतिराव गोविंदराव फुले ,जो ज्योतिबा या महात्मा फुले के नाम से प्रसिद्ध रहे,थे| लोकहितवादी अनेक सामजिक सुधार संगठनों से जुड़े हुए थे| उन्होंने महिलाओं की स्थिति में उत्थान के लिए कार्य किया और जाति-प्रथा की आलोचना की|

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