उसने कहा था कहानी का सारांश लिखे ।
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Answer: उसने कहा था” प्रेम, शौर्य और बलिदान की अद्भुत प्रेम-कथा है। प्रथम विश्व युद्ध के समय में लिखी गयी यह प्रेम कथा कई मायनों में अप्रतिम है। प्रथम-दृष्टि-प्रेम तथा साहचर्यजन्य प्रेम दोनों का ही इस प्रेमोदय में सहकार है।
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उसने कहा था कहानी की शुरुआत अमृतसर के बाजार से होती है | इस कहानी का प्रमुख नायक एक सिख परिवार का लड़का लहना और सिख परिवार की लाडली लड़की होंरा जो बाद में सूबेदार हजारा सिंह की पत्नी होती है, कि कई बार मुलाकात अमृतसर के बाजार में एक दुकान पर होती है | बालक उस बालिका पर हम तस्वीर हो जाता है और 1 दिन जान पर खेलकर वह उसकी प्राण रक्षा करता है | बात बात में जब लड़का उससे पूछता है कि उसकी कुड़माई हो गई तो वह दत्त कह कर भाग जाती है | इसी तरह उन दोनों की मुलाकात होती रहती है और 1 दिन पूछने पर लड़की धीरे से बोलती है - ‘‘हां हो गई देखते नहीं यह रेशम के कड़े हुए सालू” | लहंगा सिंह मायूस हो जाता है और सारी कसर खोमचे वाले और कुत्ते पर निकालता है और उनसे उलझता हुआ अपने घर पहुंचता है | कई वर्ष बीत जाते हैं | 25 वर्ष बाद वह चंचल और नटखट बालक लहना सिंह 77 नं० सिक्स राइफल का फौजी जमादार होता है | वह जर्मनी युद्ध के मैदान में कार्यरत होता है | जंग पर जाने से पहले सूबेदार का खत उसे मिलता है कि वह भी साथ चलेगा | सूबेदार हजारा सिंह की शादी उसी लड़की से हुई थी जिसको जमादार हजारा सिंह पसंद करता था | उनका एक पुत्र था जिसका नाम बोधा सिंह वह भी फौज में सैनिक जवान था | उन्हें लेने के लिए लाना सिंह उनके गांव जाता है फिर उनके घर पहुंचता है जहां सूबेदारनी उसे पहचान जाती है | ममता का स्त्रोत एक बार फिर दोनों के हृदय में उमड़ उठता है | वह लाना सिंह पर उम्मीद रखती है और अपने पति और पुत्र को युद्ध क्षेत्र में बचाने की बात कहती है जैसे उसने एक बार सूबेदार ने की जान बचाई थी | युद्ध क्षेत्र में पहुंचने पर लहना सिंह उसके बीमार पुत्र बोधा सिंह को अपनी सारी गर्म कपड़े पहनाता है | अपने कार्य को पूरा करता है | उसी समय एक जर्मन लपटन साहब की वर्दी धारण कर वहां एक फौजी आता है और सूबेदार हजारा सिंह को जर्मनों पर आक्रमण करने का आदेश देता है | सूबेदार हजारा सिंह आदेश के पालन के लिए मार्च करता है | नकली लपटन लहना को सिगरेट पीने के लिए देता है | लहना को समझने में देर नहीं लगती की हजारा सिंह धोखे से मौत के चंगुल में फंस गए हैं | इसके बाद वह अपने एक जवान को सूबेदार हजारा सिंह की मदद करने के लिए भेजते हैं और उन्हें गंभीर खतरे से बचा लेते बचा लेते हैं | इसी में नकली लपटन साहब उन पर वार कर देता है | उन्हें चोट लगती है किंतु घाव को कपड़े से बांधकर वही नकली लपटन साहब का वह काम तमाम कर देता है | सूबेदार हजारा सिंह भी वहां पहुंचते हैं और लड़ाई होती है और सभी दुश्मन के चंगुल से बच जाते हैं | लहंगा गंभीर चोट को साधारण चोर बताकर अस्पताल में इलाज के लिए दाखिल नहीं होता | उसे उस पीड़ा में ही सुख और आराम की अनुभूति होती है | सूबेदार के जाने के समय वह कहता है - सुनिए तो, सूबेदारनी को चिट्ठी लिखो तो मेरा माथा टेकना लिख देना और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे उसने जो कहा था, वह मैंने कर दिया | उसकी अंतिम सांसे इस वाक्य के साथ कि उसने कहा था जिसे मैंने पूरा किया, समाप्त हो जाती है |