Use a A4 size blank paper for making the Time Zone Model. Fold the paper at the centre Use a coloured Pencil to trace over the line at the centre of the paper and label this line as the Prime Meridian. Label the lines to the east (Right) of the Prime Meridian, at 15˚interval each, up to 180˚.Repeat the same to the west (Left). Point out that each line represents one hour. You will count hours plus to the east and minus to the west on their paper. Assume that it is 12.00 noon of the 20th June, on the Prime Meridian. Use the chart to determine the time on each time zone. Select any five time zones on the chart and find out which country falls in that time zone. Make a tabular form to present this information about the five countries, their time zones and the time in that zone, with reference to the Prime Meridian. Eg- Country Time Zone Time ( GMT+...) project
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केवल बीस पच्चीस घुड़सवारों को लेकर महाराणा लाखा ‘‘बूंदी’’ फतह करने को चल पड़े। सूरजपोल से निकल कर उन्होंने बूंदी पर आक्रमण कर दिया। चित्तौड़ दुर्ग की दुन्दुभियों ने विजयराग अलापा। नौबत पर विजयाभियान का डंका पड़ा और नकीबों ने चित्तौड़पति के जयघोष से आकाश गूंजा दिया।
“हर-हर महादेव” के कुल-घोष के साथ ही घोड़ों के ऐड लगा दी। टापों की रगड़ से उत्पन्न काली मिट्टी का बादल पीछे और घोड़े आगे दौड़े जा रहे थे। बाल रवि की चमकीली किरणों ने उज्ज्वल तलवारों को और भी अधिक चमका दिया। अब केवल दो सौ हाथ दूर बूंदी रह गई थी। एक, दो और तीन ही क्षण में मिट्टी की बूंदी मिट्टी में मिलाई जाने वाली थी।
‘सप’ करता हुआ एक तीर आया और महाराणा के घोड़े के ललाट में घुस गया। धवल ललाट से रक्त की पिचकारी छूट पड़ी। घोड़ा चक्कर खाकर वहीं गिर गया। महाराणा कूद कर एक ओर जा खड़े हुए। दूसरा तीर आया और एक सैनिक की छाती में घुस गया।
सैनिक वहीं गिरकर ढेर हो गया। सब घोड़े वहीं रोक दिए गए।
“हैं ! यह क्या ? ये तीर कहाँ से आ रहे हैं ? यहाँ कौन अपने शत्रु हैं ?’ महाराणा ने सम्हलते हुए पूछा। यह तीर तो बूंदी में से आ रहे हैं। एक सरदार ने शीघ्रतापूर्वक घोड़े से उतरते हुए कहा।
“बूंदी’ में से कौन तीर चला रहा है ? जाकर पता लगाओ।“ और एक सरदार घोड़े से उतरा और बूंदी की ओर चला पता लगाने के लिए, महाराणा का दूत बनकर। उसने जाकर देखा- एक युवक अपने साथियों सहित मोर्चा बाँधे खड़ा था। वह शास्त्रास्त्रों से सुसज्जित था और हवा में उड़ रहे केसरिया वस्त्र के पल्ले को धनुष पर चढ़ाए हुए तीर की पंखुड़ियों में से निकाल रहा था।
“हैं ! कुम्भाजी तुम ! यहाँ किसलिए आए?
“बूंदी की रक्षा करने के लिए।’’
“क्या ये तीर तुमने चलाए थे?’
“हाँ”
‘‘मेवाड़ का छत्र भंग करना चाहते थे ?’’
‘‘छत्र भंग करना नहीं चाहता था इसीलिए घोडे के ललाट में तीर मारा।’’
“चलो महाराणा साहब के पास ।’
“महाराणा साहब से निवेदन करो कि बूंदी विजय का विचार त्याग दें तो हाजिर होऊँ ।’’
तुम्हें मालूम है, महाराणा साहब ने प्रतिज्ञा की है कि जब तक बूंदी विजय नहीं कर लूंगा तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा। बूंदी यहाँ से दूर भी है और उसको सरलता से विजय भी नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर महाराणा के दृढ़-प्रण और अमूल्य प्राणों की रक्षा भी अत्यावश्यक है। इसीलिए यह नकली बूंदी बनाई गई है। इसको विजय कर महाराणा अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर अन्न-जल ग्रहण कर लेंगे। असली बूंदी फिर धीरे-धीरे तैयारी करके विजय करली जाएगी। इसीलिए तुम यहाँ से हट जाओ और महाराणा साहब को अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने दो।’
“मेरे लिए तो यह असली बूंदी से भी बढ़कर है। महाराणा साहब से निवेदन कर दो कि पाँच हाड़ों के मरने के उपरान्त ही इस ‘‘बूंदी’’ को विजय कर सकोगे।”