use of technology and non use of technology in Hindi
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टेक्नोलॉजी का उपयोग अब खुद को आगे बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। विज्ञान बिजली की गति से बड़े पैमाने पर लाभ उठा रहा है कि कंप्यूटर गणना कर सकते हैं और जटिल सवालों की जांच कर सकते हैं जो मनुष्यों को जवाब देने के लिए कई जीवनकाल लेगा। कंप्यूटर के कारण चिकित्सा संबंधी सफलताएँ, रासायनिक और खगोलीय खोजें हुई हैं।
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अब हर व्यक्ति टेक्नोलॉजी का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने लगा है। हमें किसी भी चीज के बारे में जानकारी प्राप्त करनी हो या मनोरंजन करना हो, हम इंटरनेट और डिजिटल डिवाइसेज की शरण में चले जाते हैं। इस आदत की वजह से कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं। अब समय आ गया है कि जब जीवन में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सीमित किया जाए।
तकनीक हमारी जिंदगी और समाज में इस तरह से घुस गई है कि अब लोग यह भूल गए हैं कि टेक्नोलॉजी के बिना दुनिया का स्वरूप क्या था। हालांकि दुनिया के सबसे शानदार दिमागों ने दिन-रात मेहनत करके नित नई टेक्नोलॉजीज पेश की हैं। टेक्नोलॉजी इंसान के लिए वरदान है, पर इसका गलत इस्तेमाल खतरा बनता जा रहा है। अगर समय रहते हमने टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से जुड़ी खास बातों पर ध्यान नहीं दिया तो हमें नुकसान झेलना पड़ेगा।
डिवाइसेज का इस्तेमाल पोश्चर के लिए खतरनाक हो सकता है
दुनिया के नामी हेल्थ एक्सपर्ट इस ओर ध्यान दिला चुके हैं कि हमारा कम्प्यूटर और मोबाइल डिवाइसेज को काम में लेने का तरीका सही नहीं है। इन्हें काम में लेते समय ज्यादातर लोगों का पोश्चर सही नहीं होता है। इन डिवाइसेज पर हर इंसान लंबे समय तक काम करता है। ऐसे में गलत पोश्चर सेहत के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है। इससे पीठ और गर्दन की समस्या के साथ दिमागी परेशानियां जैसे मूड खराब रहना पैदा हो सकती हैं। अगर आप गलत पोश्चर में काम करते हैं तो इससे आपकी सेहत के साथ-साथ उत्पादकता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
सोशल मीडिया मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है
सोशल मीडिया और ज्यादा स्क्रीन टाइम से शारीरिक सेहत के साथ-साथ हमारी मानसिक सेहत भी गड़बड़ा सकती है। कई शोध बताते हैं कि डिजिटल डिवाइसेज का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हमारा दिमाग खराब कर रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग सेंटर फोर रिसर्च ऑन मीडिया, टेक्नोलॉजी एंड हेल्थ के एक सर्वे से पता लगा है कि जो व्यस्क सात से लेकर 11 तक की संख्या में सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स काम में लेते हैं, उनमें दो या इससे कम प्लेटफॉर्म काम में लेने वाले व्यस्कों की तुलना में अवसाद और व्यग्रता होने की आशंका तीन गुना बढ़ जाती है।
स्क्रीन ज्यादा काम में लेने से आपकी आंखें कमजोर हो सकती हैं
डिजिटल डिवाइस जरूरत से ज्यादा काम में लेने से आपकी आंखें कमजोर हो सकती हैं। किसी भी डिवाइस की ओर लगातार देखने से आंखों का तनाव बढ़ता है और इससे कई तरह की शारीरिक दिक्कतें हो सकती हैं। इससे आपको सिर दर्द, एकाग्रता में कमी, सूखी आंखें, आंखों में खुजली या जलन जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं। जरूरत से ज्यादा किसी डिवाइस की ओर देखने पर लाइट के प्रति संवेदनशीलता पर बढ़ सकती है।
युवाओं में प्रत्यक्ष बात करने की क्षमता घट रही है
टेक्नोलॉजी हमारी सामाजिक दक्षता को भी कम कर रही है। टेक्नोलॉजी का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने वाले युवा शारीरिक हाव-भावों को नहीं समझ पाते हैं और वे व्यावहारिक दुनिया में आमने-सामने बात करने से बचने लगते हैं। अब हमारा ज्यादातर संवाद ऑनलाइन होने लगा है। इसलिए हम सामने बैठकर किसी व्यक्ति से कुछ कहने की आदत भूलते जा रहे हैं। इससे सामाजिक संवाद में कमी आ रही है।
गैजेट्स की लत खतरनाक
टेक गैजेट्स काम में लेते हैं तो ध्यान रखें कि कहीं इनकी लत न लग जाए। कई बार इनसे दूर रहना मुश्किल हो जाता है। एक व्यस्क अमरीकी औसतन रोजाना डिजिटल दुनिया में 11 घंटे से ज्यादा समय गुजारता है। इतना ज्यादा समय डिजिटल दुनिया को देने के कारण आप बाहरी दुनिया के बारे में सही तरह से विचार नहीं कर पाते हैं।
अनिद्रा की समस्या हो सकती है
अगर सोने से पहले डिजिटल डिवाइस को देखने की आदत है तो अनिद्रा की समस्या पैदा हो सकती है। डिजिटल डिवाइस शॉर्ट वेब लेंथ आर्टिफिशियल ब्लू लाइट छोड़ते हैं। इससे नींद पैदा करने वाले मेलाटोनिन हार्मोन का स्त्राव कम हो जाता है। इसकी वजह से नींद न आने की समस्या होने लगती है जो आगे चलकर बड़ी समस्या बन सकती है।
सूचनाओं तक तुरंत पहुंच के कारण हम कम आत्मनिर्भर हो गए हैं
इंटरनेट ने सूचनाओं का प्रवाह बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है। इससे एक बड़ी समस्या पैदा हो रही है। हमारे पास रचनात्मक विचारों की कमी होती जा रही है। अब हम सवाल के जवाब के लिए तुरंत गूगल करने लगते हैं। अगर हम पूरी तरह से सर्च बार और वेब ब्राउजर पर निर्भर हो जाएंगे तो हमारा विकास अवरुद्ध हो सकता है।
तकनीक के कारण हमारी जीवनशैली गतिहीन हो गई है
ज्यादातर लोग कोई डिवाइस काम में लेते समय डेस्क, काउच या बेड पर होते हैं। इस वजह से हमारी जीवनशैली गतिहीन हो जाती है। इंसानी शरीर गतिमान जीवन जीने के लिए बनाया गया है। एक जगह स्थिर रहने से शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा हो सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गतिहीन जीवन से डायबिटीज, कार्डियो वसकुलर बीमारियां, कोलोन कैंसर, मोटापा आदि बीमारियां हो सकती हैं।
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