उत्खनन से किस प्रकार के पर्यावरणीय दुष्प्रभाव हो सकते हैं उनका क्या निदान है
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खुले आम हो रहा खनन भी पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। खनन के बाद निकाली गई रेत व बालू हवा में उड़ कर शुद्ध वायु को दूषित करती है। जिसका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। सांस के साथ रेत के कण हमारे फेफड़ों में पहुंच जाते है। जिससे नई नई बीमारियां शरीर में घर बना लेती है। इस सब के बावजूद भी अवैध खनन से निपटने को लेकर पुलिस व प्रशासन द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।
खनन की वजह से सरकार को राजस्व हानि के साथ ही प्राकृति को दैवीय खनिज की क्षति हो रही है। जिसको रोकने के लिए सरकार व जिला प्रशासन भरसक प्रयास कर रहा है। इस खनन का प्रभाव हमारे पर्यावरण पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों ही रुप से पड़ रहा है। इस पर्यावरण में रहने की वजह से इसका असर मानव जीवन पर भी पड़ रहा है, लेकिन कोई भी इस ओर गंभीर समस्या की ओर ध्यान नहीं दे रहा है। जिसके परिणाम आने वाले समय में भयंकर हो सकते है। नदियों व तालाबों से खनन करके लाई गई रेत या बालू का परिवहन खुले वाहनों में किया जाता है। जो हवा के साथ उड़कर पर्यावरण को दूषित करती है। रेत के सूक्ष्म कण हवा में फैलने से वह संास लेने पर हमारे शरीर के अंदर चले जाते है जो हमारे फेफड़ों में एकत्र हो जाता है। इससे हमारे शरीर में नई-नई बीमारियां होने लगती हैं। इसके साथ ही खुले वाहनों से रेत के कण हवा में उड़ने की वजह से वह हमारी आंखों में गिर जाते है। जिसको रगड़ने पर हमारी आंख में जख्म हो जाते है। इतना ही नहीं कई बार तो रेत व बालू से भरी टैक्टर ट्रालियां ओवरलोड होने की वजह से सड़क किनारे पलट जाती है। जिससे सड़क पर जाम के साथ ही उसे रेत या बालू में दबकर मजदूरों की मौत तक हो जाती है, लेकिन इसके बाद भी राजनैतिक संरक्षण में चल रहे खनन के इस कारोबार को शासन व प्रशासन बंद कराने में असमर्थ है।