उत्साह चैप्टर के दूसरे पैरे की vyakhya
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२. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!
व्याख्या - कवि कहता है कि हे बादलों ! तुम्हारे आने से पहले संसार में भयंकर गर्मी के कारण लोग बेचैन और उदास थे। चारों ओर वातावरण में निराशा व बेचैनी व्याप्त थी। हर मनुष्य व्यथित था। अतः तुम पता नहीं किस अज्ञान दिशा से आये हो। अतः अब खूब बरसो और गर्मी के कारण तप्त धरती को शीतल कर दो। उन्हें ठंडक पहुँचावों। अतः दे बादल खूब बरसो।
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