उत्तम विद्या लीजिए, जदपि नीच पै होय।
परयौ अपावन ठौर में, कंचन तजत न कोय।।
iska arth koi batta do
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भावार्थ :- अपवित्र या गन्दे स्थान पर पड़े होने पर भी सोने को कोई नहीं छोड़ता है। उसी प्रकार विद्या या ज्ञान चाहे नीच व्यक्ति के पास हो, उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।
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उत्तम विद्या लीजिए, जदपि नीच पै होय।
परयौ अपावन ठौर में, कंचन तजत न कोय।। भावार्थ लिखिए।
- संदर्भ : ये पंक्तियां नीति के दोहे से ली गई है। उनके रचयिता है तुलसीदास जी।
- प्रसंग : इस दोहे में कवि कहते है कि बुरे व्यक्ति के भी उत्तम गुणों को ग्रहण करो, उसकी बुराइयों को मत देखो।
- व्याख्या : तुलसीदास जी ने अनुसार मनुष्य को हमेशा दूसरों की उत्तम विद्या अर्थात अच्छे गुण स्वीकार करने चाहिए फिर ये सद्गुण चाहे बुरे व्यक्ति में भी क्यों न हो।
- कवि कहते है यदि किसी अपवित्र जगह में सोना पड़ा हो तो भी उसे कोई छोड़ नहीं देता , उठा लेता है इसलिए अच्छे गुण भी जहां से भी मिले हमें ग्रहण करने चाहिए। इससे हममें भी अच्छे गुण आयेंगे।
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