उत्तर भारत के व्जंनों की दुर्गति क्यों हो रही है?
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भारत की दुर्गति के पीछे वेद की आज्ञाओं का उलंघन ही था ।
September 2, 2020 • आचार्य भानु प्रताप वेदालंकार
जानिए वेद की आज्ञाओं के उलंघन का कितना भयंकर परिणाम हो सकता है ? भारत की दुर्गति के पीछे वेद की आज्ञाओं का उलंघन ही था ।
पहली आज्ञा :
अक्षैर्मा दिव्य: (ऋ 10/34/13)
अर्थात् "जुआ मत खेलो ।" इस आज्ञा का उलंघन हुआ । इस आज्ञा का उलंघन धर्मराज कहे जाने वाले युधिष्टर ने किया ।
परिणाम : एक स्त्री का भरी सभा में अपमान । महाभारत जैसा भयंकर युद्ध जिसमें लाखों, करोड़ों योद्धा और हज़ारों विद्वान मारे गए । आर्यवर्त पतन की ओर अग्रसर हुआ ।
दूसरी आज्ञा :
मा नो निद्रा ईशत मोत जल्पिः (ऋ 8/48/14)
अर्थात् "आलस्य, प्रमाद और बकवास हम पर शासन न करें ।" लेकिन इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । महाभारत के कुछ समय बाद भारत के राजा आलस्य प्रमाद में डूब गये ।
परिणाम : विदेशियों के आक्रमण ।धर्म के नाम पर अंधविश्वास का पाखण्ङ फैल जाना।
तीसरी आज्ञा :
सं गच्छध्वं सं वद्ध्वम (ऋ 10/191/2)
अर्थात् "मिलकर चलो और मिलकर बोलो ।" वेद की इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । जब विदेशियों के आक्रमण हुए तो देश के राजा मिलकर नहीं चले । बल्कि कुछ ने आक्रमणकारियों का ही सहयोग किया ।
परिणाम : लाखों लोगों का कत्ल, लाखों स्त्रियों के साथ दुराचार, अपार धन-धान्य की लूटपाट, गुलामी ।
चौथी आज्ञा :
कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो में सव्य आहितः (अथर्व 7/50/8)
अर्थात् "मेरे दाएं हाथ में कर्म है और बाएं हाथ में विजय ।" वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ । लोगों ने कर्म को छोड़कर ग्रहों फलित ज्योतिष आदि पर आश्रय पाया ।
परिणाम : कर्महीनता, भाग्य के भरोसे रहकर आक्रान्ताओं को मुँहतोड़ जवाब न देना । धन-धान्य का अपव्यय, मनोबल की कमी और मानसिक दरिद्रता ।
पाँचवीं आज्ञा :
उतिष्ठत सं नह्यध्वमुदारा: केतुभिः सह ।
सर्पा इतरजना रक्षांस्य मित्राननु धावत ।।
(अथर्व 11/10/1)
अर्थात् "हे वीर योद्धाओ ! आप अपने झण्डे को लेकर उठ खड़े हो और कमर कसकर तैयार हो जाओ । हे सर्प के समान क्रुद्ध रक्षाकारी विशिष्ट पुरुषो ! अपने शत्रुओं पर धावा बोल दो ।" वेद की इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । जब लोगों के बीच बुद्ध ओर जैन मत के मिथ्या अहिंसावाद का प्रचार हुआ । लोग आक्रमणकारियों को मुँहतोड़ जवाब देने की बजाय मिथ्या अहिंसावाद को मुख्य मानने लगे ।
परिणाम : अशोक जैसे महान योद्धा का युद्ध न लड़ना । विदेशियों के द्वारा इसका फायदा उठाकर भारत पर आक्रमण ।
छठी आज्ञा :
मिथो विघ्राना उप यन्तु मृत्युम (अथर्व 6/32/3)
अर्थात् "परस्पर लड़ने वाले मृत्यु का ग्रास बनते हैं और नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं ।" वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ ।
परिणाम : भारत के योद्धा आपस में ही लड़-लड़कर मर गये और विदेशियों ने इसका फायदा उठाया ।
सातवीं आज्ञा :
न तस्य प्रतिमा अस्ति
(यजुर्वेद 32/3)
अर्थात् "ईश्वर का कोई प्रतिमा नहीं है ।" लेकिन इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ और लोगों ने ईश्वर को एकदेशी मुर्ति तक समेट दिया।
परिणाम : ईश्वर के सत्य स्वरुप को छोड़कर भिन्न स्वरुप की उपासना और सत्य धर्म को भूला देना। मंदिर मे ढेर सारा धन आदि जमा हो जाना जो न धर्म रक्षा मे लगता है न अभाव गरीबी दुर करने मे
तो आइये, फिर से वेदों की ओर लौट चलें . . .
और एक सशक्त राष्ट्र और चरित्रवान विश्व का निर्माण करे
*कृण्वन्तो विश्वमार्यम।
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