उत्तर पूर्व के पहाड़ी क्षेत्र से संबंधित भारतीय प्रावधानों पर एक निबंध लिखिए
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पूर्वोत्तर पहाड़ियों का विस्तार छह राज्यों में है। ये राज्य हैं- असम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय। ये पहाड़ियाँ बांग्लादेश और उत्तरी म्यांमार तक चली जाती हैं और ब्रह्मपुत्र घाटी की दक्षिणी ढलान और बराक घाटी की उत्तरी-पूर्वी और दक्षिणी ढलान को छूती हैं। मेघालय पठार पूरे मेघालय और असम के कार्बी पहाड़ों तक फैला है।1
इस क्षेत्र की जलवायु और बरसात में काफी भिन्नताएँ हैं। पहाड़ियों और पठारों से घिरे इस क्षेत्र में तापमान से ज्यादा विविधता बरसात के मामले में है। चेरापूँजी मावसीनराम क्षेत्र में सालाना औसत वर्षा 13,390 मिमी तक हो जाती है। लेकिन मेघालय पठार जैसे वर्षा से वंचित इलाके में सिंचाई के बिना काम नहीं चलता। ब्रह्मपुत्र घाटी की उत्तरी ढलानों पर सालाना औसत वर्षा 2,500 मिमी तक होती है, वहीं घाटी के दक्षिणी इलाकों और मेघालय के उत्तरी हिस्सों में सालाना 2,000 मिमी वर्षा ही होती है।
संरक्षण आधारित भूप्रबन्ध की प्रणालियों को जल संचय के लक्ष्य के लिये उपयुक्त और सुरक्षित पाया गया है। भूसंरक्षण की सरल प्रणालियाँ, जैसे सीढ़ीदार खेत, घुमावदार मेंड़ आदि को अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाये तो प्रति साल प्रति हेक्टेयर दो से तीन टन मिट्टी को बह जाने से रोका जा सकता है। इतना ही नहीं, भू और जल संसाधनों के समग्र विकास के लिये मिट्टी से बने बाँधों का इस्तेमाल कर होने वाले जल संग्रह की काफी सम्भावनाएँ हैं।”3
संरक्षण आधारित भूप्रबन्ध की प्रणालियों को जल संचय के लक्ष्य के लिये उपयुक्त और सुरक्षित पाया गया है। भूसंरक्षण की सरल प्रणालियाँ, जैसे सीढ़ीदार खेत, घुमावदार मेंड़ आदि को अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाये तो प्रति साल प्रति हेक्टेयर दो से तीन टन मिट्टी को बह जाने से रोका जा सकता है। इतना ही नहीं, भू और जल संसाधनों के समग्र विकास के लिये मिट्टी से बने बाँधों का इस्तेमाल कर होने वाले जल संग्रह की काफी सम्भावनाएँ हैं।”3परिषद के एक अन्य शोधपत्र में कहा गया है कि ये देसी प्रणालियाँ न सिर्फ संसाधनों के रख-रखाव के लिये असरदार हैं, बल्कि इनसे पैदावार भी अच्छी होती है।”4