उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में) पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भवनावशेषों के अध्ययन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके अनुसार यह पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रहीं?
Answers
पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भवनावशेषों के अध्ययन में अनेक पद्धतियों का प्रयोग किया गया ; जैसे :
- 18 ई० में कॉलिन मैकेंजी ने हंपी के पुरातात्विक साक्ष्यों की ओर ध्यान आकर्षित किया । मैकेंजी ने सर्वप्रथम इस जगह सर्वेक्षण पद्धति का प्रयोग करके यहां पर आधारित मानचित्र तैयार किया। चित्र, नक्शे , संरचनाओं के खड़ी रेखा चित्र आदि का विस्तृत विश्लेषण किया। मैकिंजी द्वारा किए गए आरंभिक सर्वेक्षणों के पश्चात यात्रा वृतांतों और अभिलेखों से मिली जानकारी को एक साथ जोड़ा गया। हंपी के पुरातात्विक साक्ष्यों के अध्ययन में विदेशी यात्रियों के वृतांतों का भी अध्ययन किया गया और उनको स्थानीय भाषा में लिखे साहित्य से मिलाया गया।
- इसके शुरुआती जानकारियां विरुपाक्ष मंदिर तथा पम्पा देवी के पूजा स्थल के पुरोहितों ने अपनी स्मृतियों के आधार पर दी। 1856 ई. में अलेक्जेंडर ग्रनिलो ने हंपी के पुरातात्विक अवशेषों के पहले विस्तृत चित्र जारी किया।
विरुपाक्ष मंदिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी :
उपरोक्त सभी जानकारी निसंदेह विरुपाक्ष मंदिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई सूचनाओं की पूरक थी । पुरोहितों द्वारा दी गई जानकारियों को पूरक इसलिए माना जाता है, क्योंकि मैकेंजी और ग्रनिलो के द्वारा जारी की गई सूचनाएं का चित्र अधिक सीमा तक पुरोहितों द्वारा प्रदत सूचनाओं से मिलते जुलते हैं। इसके अतिरिक्त यह विद्वान आंकड़ों व चित्रों के संग्रह में पुरोहितों का सहयोग लेते थे।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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Explanation:
उत्तर: पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भवनावशेषों के अध्ययन की पद्धतियाँ एवं विरुपाक्ष मंदिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का यूरक:
- विजयनगर का विनाश होने के लगभग दो सौ वर्ष पश्चात् भी विजयनगर की स्मृति बनी रही।