उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में) उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकार क्या अर्थ निकालते हैं?
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संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकारों का अर्थ :
आठवीं से 18 वीं शताब्दी के काल को विभिन्न संप्रदायों के मध्य धार्मिक विश्वास और आचरण का समन्वय के काल के नाम से जाना जाता है। यहां समन्वय का अभिप्राय इस बात से है कि इस कालावधि में विभिन्न संप्रदायों की पूजा व आराधना पद्धति का अधिग्रहण होने लगा था । लोग एक दूसरे के विचार, विश्वास एवं प्रथाओं को अपनाने लगे थे।
इस काल के साहित्य व कला दोनों से विभिन्न प्रकार के देवी देवताओं की जानकारी मिलती है।
पूर्व में प्रचलित विष्णु, शिव एवं देवियों के विभिन्न रूपों की आराधना के साथ ही इस काल में अब स्थानीय देवताओं के साथ इनका संबंध जोड़ा जाने लगा था । इस समन्वय का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण वर्तमान उड़ीसा के पुरी में देखने को मिलता है। यहां के स्थानीय देवता जगन्नाथ को विष्णु का एक रूप माना गया । समन्वय के ऐसे उदाहरण 'देवी' संप्रदायों में भी देखने को मिलते हैं। देवी की उपासना अधिकतर सिंदूर से पोते गए पत्थरों के रूप में की गई। यहां शाक्त धर्म का प्रचलन था।
विभिन्न संप्रदायों के समन्वय से एक अलग प्रकार की विचारधारा सामने आई जो विभिन्न क्षेत्रों में दिखाई देती है। इस विचारधारा के कारण ब्राह्मण वर्ग भी स्त्रियों और निम्न वर्ग के लोगों की विचारधाराओं को स्वीकार करने लगे। धर्म को एक नया स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया, जिसके अंतर्गत पुराण तथा काव्यों को संस्कृत में लिखा गया , जिसे समाज के सभी वर्गों के लोग समझ सकें।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकार यह अर्थ निकालते हैं कि किस संप्रदाय के शासक ज्यादा शक्तिशाली थे और परोपकारी थे ,कुछ इतिहासकार अपने संप्रदाय से पक्षपात भी करते हैं और झूठी इतिहास रचने में पीछे नहीं हटते और अपने संप्रदाय के बारे में अच्छी-अच्छी बातें बताते हैं और दूसरे संप्रदायों की बुराई करते हैं । इसलिए हमें चाहिए कि हम ऐसे इतिहासकार की इतिहास की किताब को पढ़ें और उससे कुछ सीखे