उठा भग के अमर सपूतो,
पूनः नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नई स्पति नव प्राण भरो।
नया प्रात: है, नई बात है,
नई किरण है, ज्योति नई।
नई उमंगे, नई तरंगे
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में,
नई नई मुसकान भरो।
उठो धरा के अमर सपूता,
साक्षर बन
पुनः नया निर्माण करो।
कली-कली खिल रही इधर,
वह फूल-फूल मुसकाया है।
धरती माँ की आज हो रही,
नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमयी ध्वनियों से,
गुंजित जग-उद्यान करो,
उठो धरा के अमर सपूतो,
पुनः नया निर्माण करो।
दवाद्रिका प्रसाद माहेशवरी
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nice your poem good you writing
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