उठो, नई किरण लिए जगा रही नई उषा
उठो, उठो नए संदेश दे रही दिशा-दिशा।
खिले कमल अरुण, तरुण प्रभात मुस्करा रहा,
गगन विकास का नवीन, साज है सजा रहा।
उठो, चलो, बढ़ो, समीर शंख है बजा रहा,
भविष्य सामने खड़ा प्रशस्त पथ बना रहा।
उठो, कि सींच स्वेद से, करो धरा को उर्वरा,
कि शस्य श्यामला सदा बनी रहे वसुंधरा।
अभय चरण बढ़ें समान फूल और शूल पर,
- कि हो समान स्नेह, स्वर्ण, राशि और धूल पर ।
सुकर्म, ज्ञान, ज्योति से स्वदेश जगमगा उठे,
कि स्वाश्रयी समाज हो कि प्राण-प्राण गा उठे।
सुरभि मनुष्य मात्र में भरे विवेक ज्ञान की,
सहानुभूति, सख्य, सत्य, प्रेम, आत्मदान की।
nyi usa sirsak kavita me kavi kin kin parivartno ki or Sanket karta hai
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hamko hindi pata nahi bhaisab jara jhor se tho bholo bevade
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सारांश – कविता में कवि ने नवयुवकों को देश के नवनिर्माण के लिए कर्म-पथ पर बढ़ते रहने का सन्देश दिया है। कवि के अनुसार परतन्त्रता के द:खों की रात्रि बीत चुकी है। नया प्रभात द्वार पर दस्तक दे रहा है। ऐसे में देश की प्रगति के लिए नवयुवकों को कड़ा परिश्रम करना होगा। उन्हें बाधाओं पर विजय प्राप्त करते हए देश को आत्मनिर्भर बनाना होगा। निरक्षरता को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाना होगा। आपसी कलह और द्वेष को भलकर आपस में प्रेम एवं भाई-चारे का भाव जगाना होगा।
- कवि देश के नवयुवकों से कह रहे हैं कि अब सोने का वक्त नहीं है। परतन्त्रता रूपी रात्रि बीत चुकी है। स्वतन्त्रता का नया प्रभात द्वार पर दस्तक दे रहा है। चारों ओर उजाला फैल गया है। ऐसे में प्रत्येक दिशा यह सन्देश दे रही है कि अब उठो और कर्म में जुट जाओ।
- कवि कहते हैं कि आजादी की नयी सुबह मुस्करा रही है। चारों ओर खुशियों की लालिमा फैल रही है। उम्मीदों के कमल खिल गये हैं। आकाश जैसे विकास के नये गीत गाने के लिए विभिन्न साजों को सजा रहा है। हवाएँ जैसे शंख की मंगल-ध्वनि कर रही हैं। अत: हे नवयुवको ! उठो और आगे बढ़ो। तुम्हारे सामने तुम्हारा भविष्य खड़ा हुआ है, जो स्वयं तुम्हारा रास्ता बना रहा है।
- कवि कहते हैं कि हे नवयुवको ! उठो, अपने पसीने से सींचकर इस धरती पर उपजाऊ बना दो, ताकि यह धरती सदैव हरी-भरी बनी रहे अर्थात् कठोर परिश्रम कर धरती की उत्पादन क्षमता को बढ़ा दो। तुम्हारे रास्ते में फूल आयें या काँटे, तुम्हें निर्भीकता के साथ आगे बढ़ना है। ऐसे ही धन-सम्पत्ति के साथ-साथ धूल-मिट्टी से भी प्रेम करना सीखो, ताकि यह देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सके। तुच्छ एवं महत्वहीन वस्तुओं की भी उपेक्षा मत करो अर्थात् अमीरों एवं गरीबों के साथ समानता का व्यवहार करो।
- व्याख्या – कवि कहते हैं कि सब लोग बुराइयों का परित्याग कर अच्छे कार्य करें। ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलायें जिससे निरक्षरता का अन्धकार मिटे और ज्ञान की रोशनी से हमारा देश जगमगा उठे। कोई किसी दूसरे पर आश्रित न रहे। सभी स्वावलम्बी बनें। सभी के चेहरे खुशियों से खिल उठे और लोग प्रसन्नता के गीत गायें। लोगों को भले-बुरे का ज्ञान हो। सहानुभूति, मैत्री, सच्चाई, प्रेम और त्याग की सुगन्ध से मनुष्य मात्र का हृदय भर उठे अर्थात् आपसी कलह और द्वेषभाव को भूलकर प्रत्येक देशवासी एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति, प्रेम और त्याग की भावना का परिचय दें।
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