utsah short summary in hindi
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बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुंघराले,
बाल कल्पना के से पाले,
विद्युत छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो
बादल गरजो!
इस कविता में कवि ने बादल के बारे में लिखा है। कवि बादलों से गरजने का आह्वान करता है। कवि का कहना है कि बादलों की रचना में एक नवीनता है। काले-काले घुंघराले बादलों का अनगढ़ रूप ऐसे लगता है जैसे उनमें किसी बालक की कल्पना समाई हुई हो। उन्हीं बादलों से कवि कहता है कि वे पूरे आसमान को घेर कर घोर ढ़ंग से गर्जना करें। बादल के हृदय में किसी कवि की तरह असीम ऊर्जा भरी हुई है। इसलिए कवि बादलों से कहता है कि वे किसी नई कविता की रचना कर दें और उस रचना से सबको भर दें।
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुंघराले,
बाल कल्पना के से पाले,
विद्युत छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो
बादल गरजो!
इस कविता में कवि ने बादल के बारे में लिखा है। कवि बादलों से गरजने का आह्वान करता है। कवि का कहना है कि बादलों की रचना में एक नवीनता है। काले-काले घुंघराले बादलों का अनगढ़ रूप ऐसे लगता है जैसे उनमें किसी बालक की कल्पना समाई हुई हो। उन्हीं बादलों से कवि कहता है कि वे पूरे आसमान को घेर कर घोर ढ़ंग से गर्जना करें। बादल के हृदय में किसी कवि की तरह असीम ऊर्जा भरी हुई है। इसलिए कवि बादलों से कहता है कि वे किसी नई कविता की रचना कर दें और उस रचना से सबको भर दें।
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