Hindi, asked by mahakbhandari58, 9 months ago

Uttarakhand me jal pralay. Essay​

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Answered by Anonymous
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शिव की धरती केदारनाथ में 2013 के मध्य में आई आपदा से संहार और तबाही का जो तांडव मचा उसने सिर्फ उत्तराखंड को ही तहस-नहस नहीं किया, बल्कि पूरे देश को रुला दिया और दुनिया को प्रकृति की ताकत के समक्ष अपनी क्षमता को देखने का एक और दर्पण भी दे दिया।

केदारनाथ में आपदा 16 और 17 जून की रात ऐसे वक्त पर आई, जब यात्रा चरम पर थी और श्रद्धालु बड़ी संख्या में शिव दर्शन के लिए केदारनाथ में थे या उसके करीब थे। मंदिर के ऊपरी हिस्से में बने विशाल ताल के टूटने से यह आपदा आई, जिसने मंदिर परिसर में तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए बने कई आवासीय भवनों को पूरी तरह ध्वस्त कर दिय

उत्तराखंड की तबाही का मंजर सिर्फ केदारनाथ तक ही सीमित नहीं था। भारी बारिश के कारण तबाही राज्य में स्थित शेष तीन धामों बदरीनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री में भी हुई, लेकिन वहां लोग मारे नहीं गए। कई दिनों तक जरूर फंसे रहे। यही हाल सिखों के पवित्र स्थल हेमकुंड साहेब का भी थे, जहां बड़ी संख्या में यात्री फंसे रहे। बदरीनाथ में यात्रा मार्ग भूस्खलन के कारण अवरुद्ध हो गया था और यात्रियों के लिए गोविंदघाट से निकलना चुनौती बन गया था इसलिए सेना का केदारनाथ से यात्रियों को निकालने का अभियान गोविंदघाट में उसी स्तर पर जारी रहा।

गंगोत्री और यमनोत्री में फंसे यात्रियों को निकालने का काम उत्तकाशी के मातली से अर्ध सैनिक बलों ने किया। सेना के दिनरात चले अभियान के बाद उत्तराखंड सरकार ने 29 जून को कहा कि सभी यात्रियों को निकाल लिया गया है। सैन्य अभियान के आखिरी दिन एक दुखद घटना हुई। केदारनाथ में सैनिकों को लेने जा रहा एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन उसके बाद भी सेना के जवानों ने रास्ते में फंसे यात्रियों को निकालने के अभियान चलाया। यात्रियों के केदारनाथ के लिए पैदल मार्ग पर ज्यादा फंसे होने की संभावना जताई जा रही थी। इस मार्ग पर कोई यात्री तो नहीं मिला, लेकिन रास्ते में फंसे घोड़े-खच्चर कई दिन बाद जरूर मिले।

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Answered by manidevansh3000
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Answer:

धामों में शामिल केदारनाथ धाम में 16 जून की रात को आए जल प्रलय ने हजारों यात्रियों को मौत के मुंह में धकेल दिया।

हजारों अभी भी यात्री लापता हैं तथा हजारों यात्री पहाड़ों के बीच अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

केदारनाथ में भगवान शिव विराजित हैं। उन्हें ईशान भी कहा जाता है। वेदों में ईशान को जल का देवता कहा गया है। जल के देवता ने प्रलय की ऐसी कहानी लिखी, जो बरसों तक लोगों को याद रहेगी।

इस आपदा के बीच पहाड़ों की मुसीबतों से संघर्ष कर आए ऐसे ही एक नौजवान से सुनते हैं जल प्रलय की पूरी दास्ता न-

मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के रहने वाले सचिन हेमंत अपने परिवार के साथ चार धाम यात्रा पर गए थे। वे वापस लौट रहे थे, तभी उन्हें इस आपदा का सामना करना पड़ा। वे इस दर्दनाक घटना को याद करते हुए बताते हैं कि हमारे दल में 3 कपल और 4 बच्चे थे। गुप्तकाशी से लौटते समय शाम 5 बजे यह जल प्रलय आया। लोग बदहवास हो गए।

आगे पढ़ें... पलक झपकते ही चारों ओर पानी ही पानी...

रास्ते भूस्खलन से बंद हो गए थे। केदारनाथ से 50 किलोमीटर दूर तक यही हाल था। केदारनाथ में इस जल प्रलय के समय करीब 5 से 10 हजार लोग जमा थे।

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वे बताते हैं कि केदारनाथ के पीछे एक तालाब है। बारिश और ग्लेशियर फटने से पानी सैलाब की तरह उसमें से केदारनाथ की तरफ बढ़ा। पलक झपकते ही सबकुछ पानी की चपेट में आ गया। पानी के साथ बड़े-बड़े पत्थर भी आ गए। पानी में लोग तिनकों की तरह बह रहे थे। एक तरफ जल प्रलय था तो दूसरी ओर सड़कों पर मलबा जमा था।

हमारे पीछे करीब एक हजार गा‍ड़ियों का काफिला था जिनमें 5 से 10 हजार लोग थे। प्रशासन ने हमें ऋषिकेश जाने के लिए मयाली, धसाली, टिहरी का रास्ता बताया। हम इस रास्ते से आगे की ओर चलने लगे। हमारे पीछे अन्य यात्रियों की गाड़ियों का काफिला भी था। यह रास्ता भी बहुत खतरनाक था, चिकनी मिट्टी और पानी से भरा हुआ। संकरा भी इतना कि एक सिंगल गाड़ी ही इस रास्ते पर चल सकती थी।।

सिर्फ मौत दिखाई दे रही थी, लेकिन...आगे पढ़ें...

आगे चलते ही हमें इस रास्ते पर भी मलबे का ढेर दिखाई दिया। हमारे सामने विकट परिस्थिति थी। हम न आगे जा सकते थे, न पीछे। हमें तो साक्षात मौत ही दिखाई दे रही थी, तभी हमें प्रशासन की जेसीबी दिखाई दी।

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जेसीबी के ड्राइवर ने बताया कि इसमें डीजल नहीं है। हमारे साथियों ने तीर्थयात्रियों से थोड़ा-थोड़ा डीजल मांगा। हमने नारा दिया- 'डीजल दो, रास्ता लो।' जेसीबी ने रास्ते का मलबा हटाया जिससे गाड़ियों का काफिला आगे निकल सका।

प्रशासनिक राहत कार्यों के बारे में सचिन का कहना था कि प्रशासन के राहत कार्य ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर थे। केदारनाथ से हरिद्वार के 250 किलोमीटर के रास्ते पर एक गैर सरकारी संस्था का कैंप टिहरी पर मिला जो आपदा पीड़ित लोगों को खाना और दवाई दे रहा था।

सचिन कहते हैं कि गौरीकुंड के टिकट कलेक्शन पर तैनात पुलिस वाला हमें बाढ़ के दो दिन के बाद मिल ा, जिसने बताया कि इस बाढ़ में केदारनाथ टिकट कलेक्शन के करीब 5 करोड़ ‍रुपए पानी में बह ग ए। उसने किसी तरह पहाड़ों पर चढ़कर अपनी जान बचाई।

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