Hindi, asked by arvya2006, 8 months ago

ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ। 7। इस साँखी का भाव सौंदर्य दो ​

Answers

Answered by hanumanaram979948
285

Answer:

ऊंचे कुल का जनमिया,  करणी ऊंच न होइ।

सुबरण कलश सुरा भरा, साधु निंदा सोई।।

भावार्थ

Explanation:

कोई चाहे कितने ही उच्च कुल  में जन्म ले यदि उसके कर्म व्यवहार आदर्श निम्न हैं तो संसार उसकी निंदा ही करता है जिस प्रकार कलश चाहे सोने का ही क्यों न हो यदि उसमें शराब भरी हुई है तो सज्जन लोग उसे अच्छा नहीं कहते हैं

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Answered by franktheruler
24

ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ।

उपुर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ निम्न प्रकार से किया गया है।

संदर्भ :

दी गई पंक्तियां कबीर जी के दोहे की है।

प्रसंग :

कबीर जी ने इन पंक्तियों में बताया है कि किसी व्यक्ति की श्रेष्ठता या महानता उसके गुणों से होती है न कि उसके ऊंचे कुल से।

व्याख्या :

  • कबीर जी इन पंक्तियों में ये बात स्पष्ट रूप से कह रहे है कि किसी इंसान की महानता उसके गुणों से आंकी जाती है, चाहे वह कितने भी ऊंचे कुल से क्यों न हो।
  • वे कहते है कि जाति के आधार पर किसी को विद्वान नहीं बताया जा सकता। यदि कोई गुणी व्यक्ति है परन्तु नीचे कुल का है तो भी वह श्रेष्ठ है।
  • वे कह रहे है कि शराब तो शराब ही होती है, यदि वह सोने के बर्तन में रखी जाए तो वह अच्छी चीज नहीं बन जाती। सज्जन व्यक्तियों के लिए शराब हमेशा बुरी चीज ही रहेगी।
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