ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ।7।
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प्रस्तुत दोहे में कवि कहता है कि ऊंचे कुल में जन्म लेने से कोई लाभ नहीं यदि आपके कर्म ऊंचे (अच्छे) न हो , जिस प्रकार सोने का कलश का कोई महत्व नहीं है यदि वह मदिरा से भरा हुआ हो ।
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