ऊँट पर निबंध | Write an essay on Camel in Hindi
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ऊंट एक बड़े आकार का पशु है ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है क्योंकि यह पानी में तैरने वाले जहाज की तरह ही रेगिस्तान में 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है. ऊंट की टांगे लंबी होती है जब की पूंछ छोटी होती है.
ऊंट की चमड़ी बहुत मोटी होती है जिसके कारण रेगिस्तान में इसको पसीना कम आता है और प्यास कम लगती है ऊंट रेगिस्तान में बिना पानी के लगभग 1 महीने तक जिंदा रह सकता है क्योंकि पानी को जमा करने के लिए इसके पेट में एक बड़ी थैली बनी होती है जिसमें है एक बार में 20 से 30 लीटर पानी जमा करके रख सकता है.
तेज धूप में भी इसका शरीर ठंडा रहता है क्योंकि इसके शरीर में पानी की मात्रा बहुत अधिक रहती है.
और जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल कर सकता है. ऊंट की गर्दन लंबी और चौड़ी होती है जिसके कारण यह है ऊंची झाड़ियों की हरी पत्तियां खा सकता है जिनसे इसे पोष्टिक आहार मिलता है.
ऊंट का मुंह है इसके शरीर के मुकाबले छोटा होता है इसके बड़े बड़े 34 दांत होते है जो कि किसी भी झाड़ियों और पत्तियों को आटे की तरह पीस देता है. इसकी लंबाई लगभग 9 से 10 फुट होती है.
ऊंट शाकाहारी पशु है यह भोजन में हरी घास हरे पत्ते अनाज और कटीली झाड़ियां खाता है. ऊंट के ऊपर एक कूबड़ बना हुआ होता है जिसमें वसा जमा होती रहती है. सामान्य भाषा में बात करें तो यह जो भी खाना खाता है उसका कुछ हिस्सा कूबड़ में चर्बी के रूप में जमा हो जाता है.
जिसके कारण जब रेगिस्तान में से काफी दिनों तक भोजन नहीं मिलता तो यह है कूबड़ की चर्बी को इस्तेमाल में लेता है. ऊंट की दो बड़ी आंखें होती है जिनके ऊपर रेगिस्तानी धूल से बचाने के लिए बोहो पर बड़े-बड़े बाल होते है. इसी कारण यह रेगिस्तानी आंधी में भी देख पाता है और सही दिशा में चल पाता है.
ऊंट एक बुद्धिमान पशु है क्योंकि यह एक बार जिस रास्ते से गुजर जाता है उसको हमेशा याद रखता है इसीलिए रेगिस्तान में कभी भी अपना रास्ता नहीं भटकता है. ऊंट के दो कान होते हैं जिन कोई धूल भरी आंधी उसे बचाने के लिए बालों की दीवार से बनी हुई होती है.
ऊंट के पैरों के पंजे गदीदार और बड़े होते हैं जिसके कारण इतना बड़ा और भारी शरीर होने के बाद भी किया है रेगिस्तान की मिट्टी में आसानी से चल पाता है. ऊंट का रंग हल्का भूरा और गहरा भूरा होता है. जब भी रेगिस्तान में धूल भरी आंधी चलती है तो ऊंट अपने नथुने बंद कर लेता है जिससे उसकी नाक में मिट्टी नहीं जा पाती है.
मादा ऊंट एक दिन में लगभग 5 से 7 लीटर दूध भी देती है. जिसका इस्तेमाल हमारे देश में आइसक्रीम बनाने दूध से बनी मिठाइयां बनाने में और मधुमेह, बच्चों में ऑटिज्म, बच्चों में गाय के दूध के प्रति एलर्जी,आर्थेराइटिस और कॉलेस्टॉल का उच्च स्तर में उष्ट्र दूध को कार्यात्मक खाद्य और डेंगू जैसी बीमारियों को ठीक करने में इस्तेमाल में लिया जाता है.
ऊंट का दूध बहुत पौष्टिक होता है इसमें तांबा, विटामिन और मिनरल्स पाए जाते है. इसका दूध गाय के दूध से भी पोष्टिक माना जाता है. ऊंट के दूध में ऊर्जा का भंडार होता है जिसके कारण ही यह इतना सहनशील और जानलेवा परिस्थितियों में भी जिंदा रह पाता है.
मादा ऊंट साल में एक बार एक या दो बच्चों को ही जन्म देती है. ऊंट के बच्चे के जन्म के समय कूबड़ नहीं होता है यह एक या दो दिन में ही अपने पैरों पर भी खड़ा हो जाता है.
“ऊँट”
मनुष्य के प्रारंभिक जीवन में भी पशुओं का विशेष योगदान रहा था और आज भी है। सभी पालतू पशुओं का अपना अपना विशेष महत्व है। अगर हम रेगिस्तान की बात करें तो सहसा ही हमारे मुंह पर नाम आ जाता है ऊंट का। यह अधिकतर रेगिस्तान में पाए जाते हैं उन्होंने अपने जीवन को इस माहौल में ढाल लिया है और सदियों से जिंदा बचे हुए हैं।
ऊँट बहुत ही विशालकाय और सहनशील पशु है। ऊँट को रेगिस्तान का जहाज भी कहा जाता है यह तपते रेगिस्तान में लगभग 21 दिन तक बिना पानी पिये रह सकता है। फोंट का उपयोग सवारी और सामान ढोने के लिए रेगिस्तान में किया जाता है।
ऊँट रेगिस्तान में 40 किलोमीटर प्रति घंटे की गति बनाए रख सकता है। ऊँट की सामान्य आयु लगभग 40 से 50 वर्ष के बीच की होती है। एक व्यस्क ऊँट एक बार में 100 से 200 लीटर तक पानी पी सकता है और यह सर्दियों में लगभग 2 महीने तक बिना पानी पिये रह सकते हैं। ऊँट का प्रमुख आहर पेड़ों की पत्तियां होता है। ऊँटों में देखने और सुनने की शक्ति बहुत तीव्र होती है। ऊँट के जबड़े मोटे होते हैं जिस वजह से हुए रेगिस्तान में पैदा होने वाले कांटेदार पौधों को भी आसानी से खा सकता है।
अपनी लंबी गर्दन की वजह से वह पेड़ की ऊंची टहनियों की पत्तियां आसानी से खा सकता है। ऊँट की चमड़ी बहुत मोटी होती है जिस कारण से पसीना नहीं आता है। शरीर पर बालों की एक मोटी परत होती है जिससे वह धूप सह लेता है।
आज पुरानी कहानियों का ध्यान में मुख्य भूमिका निभाते हैं। युद्ध के दौरान भी ऊँटों का प्रयोग होता रहा है। भारतीय सेना भी रेगिस्तान में अपने सरहद की निगरानी के लिए ऊँटों की सवारी करके निरीक्षण करती है। एक ऐतिहासिक पशु है आज इसकी संख्या कम होती जा रही है क्योंकि इसके आवास सिकुड़ते जा रहे हैं। इसके संरक्षण के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।