ऊधौ जू सूधो गहो वह मारग, ज्ञान की तेरे जहाँ गुदरी है।
कोऊ नहीं सिख मानिहै हयाँ, इक स्याम की प्रति प्रतीति खरी है।।
ये ब्रजबाला सबै इक सी, हरिश्चन्द जू मंडली ही बिगरी है।
एक जौ होय तो ज्ञान सिखाइए, कूपहिं में यहाँ भाँग परी है ।।५।।
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This is a type of Poetry..
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THIS IS A POEM
PLZZ MARK AS BRAINLIEST
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