Hindi, asked by ssunita7901, 7 months ago

(v) बाबा अब्दुल्ला ने पुनः धन किस तरह अर्जित किया?​

Answers

Answered by Ayeshavalecha
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Explanation:

hii please tell me the answer

Answered by Anonymous
5

Explanation:

बाबा अब्दुल्ला ने कहा कि मैं इसी बगदाद नगर में पैदा हुआ था। मेरे माँ बाप मर गए तो उनका धन उत्तराधिकार में मैंने पाया। वह धन इतना था कि उससे मैं जीवन भर आराम से रह सकता था किंतु मैंने भोग-विलास में सारा धन शीघ्र उड़ा दिया। फिर मैंने जी तोड़ कर धनार्जन किया और उससे अस्सी ऊँट खरीदे। मैं उन ऊँटों को किराए पर व्यापारियों को दिया करता था। उनके किराए से मुझे काफी लाभ हुआ और मैंने कुछ और ऊँट खरीदे और उनको साथ में ले कर किराए पर माल ढोने लगा।

एक बार हिंदुस्तान जानेवाले व्यापारियों का माल ऊँटों पर लाद कर मैं बसरा ले गया। वहाँ माल को जहाजों पर चढ़ा कर और अपना किराया ले कर अपने ऊँट ले कर बगदाद वापस आने लगा। रास्ते में एक बड़ा हरा-भरा मैदान देख कर मैंने ऊँटों के पाँव बाँध कर उन्हें चरने छोड़ दिया और खुद आराम करने लगा। इतने में बसरा से बगदाद को जानेवाला एक फकीर भी मेरे पास आ बैठा। मैंने भोजन निकाला और उसे साथ में आने को कहा। खाते-खाते हम लोग बातें भी करते जाते थे। उसने कहा, तुम रात-दिन बेकार मेहनत करते हो। यहाँ से कुछ दूर पर ए ofक ऐसी जगह है जहाँ असंख्य द्रव भरा है। तुम इन अस्सी ऊँटों को रत्नों और अशर्फियों से लाद सकते हो। और वह धन तुम्हारे जीवन भर को काफी होगा।

मैंने यह सुन कर उसे गले लगाया और यह न जाना कि वह इससे कुछ स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है। मैंने उससे कहा, तुम तो महात्मा हो, तुम्हें सांसारिक धन से क्या लेना-देना। तुम मुझे वह जगह दिखाओ तो मैं ऊँटों को रत्नादि से लाद लूँ। मैं वादा करता हूँ कि तुम्हें उनमें से एक ऊँट दे दूँगा। मैंने कहने को तो कह दिया किंतु मेरे मन में द्वंद्व होने लगा। कभी सोचता कि बेकार ही एक ऊँट इसे देने को कहा, कभी सोचता कि क्या हुआ, मेरे लिए उन्यासी ऊँट ही बहुत हैं। वह फकीर मेरे मन के द्वंद्व को समझ गया। उसने मुझे पाठ पढ़ाना चाहा और बोला, एक ऊँट को ले कर मैं क्या करूँगा, मैं तुम्हें इस शर्त पर वह जगह दिखाऊँगा कि तुम खजाने से भरे अपने ऊँटों में से आधे मुझे दे दो। अब तुम्हारी मरजी है। तुम खुद ही सोच लो कि चालीस ऊँट क्या तुम्हारे लिए कम हैं। मैंने विवशता में उसकी बात स्वीकार कर ली। मैंने यह भी सोचा कि चालीस ऊँटों का धन ही मेरी कई पीढ़ियों को काफी होगा।

दस ऊँट और ले कर मैं चला। किंतु मुझ पर लालच का भूत बुरी तरह सवार हो गया था। या यह समझो कि वह फकीर ही अपनी निगाहों और अपने व्यवहार से मेरे मन में लालच पैदा किए जा रहा था। मैंने अपने रास्ते से पलट कर पहले जैसी बातें कह कर और दस ऊँट उससे माँगे। उसने हँस कर यह बात भी स्वीकार कर ली और दस ऊँट अपने पास रख कर दस ऊँट मुझे दे दिए। किंतु मैं अभागा इतने से भी संतुष्ट न हुआ। मैंने बाकी दस ऊँटों का विचार अपने मन से निकालना चाहा किंतु मुझे उनका ध्यान बना रहा। मैं रास्ते से लौट कर एक बार फिर उस फकीर के पास गया और उसकी बड़ी मिन्नत-समाजत करके बाकी के ऊँट भी उससे माँगे। वह हँस कर बोला, भाई, तेरी तो नियत ही नहीं भरती। अच्छा यह बाकी दस ऊँट भी ले जा, भगवान तेरा भला करे।

सारे ऊँट पा कर भी मेरे मन का खोट न गया। मैंने उससे कहा, साईं जी आपने इतनी कृपा की है तो वह मरहम की डिबियाँ भी दे दीजिए जो आपने जिन्नों के महल से उठाई थी। उसने कहा कि मैं वह डिबिया नहीं दूँगा। अब मुझे उस का लालच हुआ। मैं फकीर से उसे देने के लिए हुज्जत करने लगा। मैंने मन में निश्चय कर लिय था कि यदि फकीर ने अपनी इच्छा से वह डिबिया नहीं दी तो मैं जबर्दस्ती करके उससे डिबिया ले लूँगा। मेने मन की बात को जान कर फकीर ने वह डिबिया भी मुझे दे दी और कहा, तुम डिबिया जरूर ले लो लेकिन यह जरूरी है कि तुम इस मरहम की विशेषता समझ लो। अगर तुम इसमें से थोड़ा सा मरहम अपनी बाईं आँख में लगाओगे तो तुम्हें सारे संसार के गुप्त कोश दिखाई देने लगेंगे। किंतु अगर तुमने इसे दाहिनी आँख में लगाया तो सदैव के लिए दोनों आँखों से अंधे हो जाओगे।

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