V
प्र. 1. (इ) निम्नलिखित अपठित गद्यांश पढ़कर सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
परोपकार ही मानवता है, जैसा कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है
'वही मनुष्य है, जो मनुष्य के लिए मरे।' केवल
अपने दुख-सुख की चिंता करना मानवता नहीं, पशुता है। परोपकार ही मानव को पशुता से सदय बनाता है। वस्तुत: निस्स्वार्थ भावना
से दूसरों का हित साधन ही परोपकार है। मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार परोपकार कर सकता है। दूसरों के प्रति सहानुभूति
करना ही परोपकार है और सहानुभूति किसी भी रूप में प्रकट की जा सकती है। किसी निर्धन की आर्थिक सहायता करना
अथवा किसी असहाय की रक्षा करना परोपकार के रूप हैं। किसी पागल अथवा रोगी की सेवा-शुश्रूषा करना अथवा किसी
भूखे को अन्नदान करना भी परोपकार है। किसी को संकट से बचा लेना, किसी को कुमार्ग से हटा देना, किसी दुखी-निराश
को सांत्वना देना-ये सब परोपकार के ही रूप है। कोई भी कार्य, जिससे किसी को लाभ पहुँचता है, परोपकार है, जो अपनी
सामर्थ्य के अनुसार विभिन्न रूपों में किया जा सकता है।
(1) संजाल पूर्ण कीजिए :
2
लेखक की दृष्टि से
परोपकार के रूप
2
(3) 'परहित सरिस धरम नहिं भाई' पंक्ति पर अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
2 -
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the question is too big make it small
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