Hindi, asked by 18Aman91071, 1 year ago

विभिन्न अलंकारों को उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए

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Answered by hotgirl1324
20
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अर्थालंकार -

(1) उपमा:- जब किन्हीं दो अलग-अलग प्रसिद्ध व्यक्तियों या वस्तुओं में आपस में तुलना की जाती है, तो वहाँ उपमा अलंकार होता है।

चाँद सा सुंदर मुख (मुख उपमेय है।)

उपमा के अन्य उदाहरण :-

(क) कोटि कुलस सम बचन तुम्हारा।

(यहाँ परशुराम जी के द्वारा बोले गए वचनों की तुलना करोड़ों व्रजों से की गई है। अत: यहाँ उपमा अलंकार हैं। साथ ही यहाँ 'सम' उपमा का वाचक शब्द है, जो इस बात की पृष्टि करता है कि यहाँ उपमा अंलकार है।)

(2) रूपक अलंकार:- जहाँ गुण में बहुत अधिक समानता होने से उपमेय और उपमान के बीच में अंतर नहीं रहता, वहाँ रूपक अलंकार होता है; जैसे-

(क) जटिल तानों के जंगल में

(यहाँ जटिल तानों को जंगल के समान बताया गया है। जिस प्रकार जंगल में जाकर मनुष्य खो जाता है, वैसे ही गायक जटिल तानों में फंसकर खो जाता है। इसलिए दोनों में गुण के आधार पर समानता होने के कारण इनके मध्य का अंतर समाप्त हो गया है। अत: हम कह सकते हैं कि यहाँ रूपक अलंकार है।)

(3) उत्प्रेक्षा अलंकार:- जहाँ उपमेय में उपमान की कल्पना या संभावना व्यक्त की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। रूपक अलंकार में गुण के आधार पर दो वस्तुओं के मध्य अंदर समाप्त हो जाता है तथा वे एक हो जाते हैं। परन्तु उत्प्रेक्षा में कल्पना या संभावना की जाती है कि वह एक हैं या लग रहे हैं। इसके वाचक शब्दों द्वारा इसे पहचाना सरल होता है। इसके वाचक शब्द इस प्रकार हैं- मनो, मानो, जानो, जनु, मनहु, मनु, जानहु, ज्यों, त्यों आदि हैं। पर यह आवश्यक नहीं है कि हर जगह वाचक शब्दों का प्रयोग हुआ ही हो।

(क) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल

(इसमें बच्चे का छूना अर्थात उसके स्पर्श की संभावना शेफालिका के फूलों के झरने के समान की गई है।)

अतिशयोक्ति अलंकार :- जहाँ किसी वस्तु, पदार्थ अथवा कथन के विषय में बढ़ा-चढ़ा कर इस प्रकार कहा जाए कि लोक सीमा की हदें पार हो जाएँ, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान

मृतक में भी डाल देगी जान

(बच्चे की मुसकान को इतना प्रभावी बताया गया है कि वह मृत व्यक्ति को भी जीवित कर सकती है। कवि ने इतनी बढ़ा-चढ़ाकर प्रशंसा की है कि वह लोक-सीमा की हद को पार कर गई है। अत: यह अतिशयोक्ति अंलकार का उदाहरण है।)

मानवीकरण अलंकार :- जहाँ प्रकृति को मनुष्य के समान क्रियाकलाप करते हुए या उसके समान भावना से युक्त दिखाया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है। प्रकृति जड़ है। वह मनुष्य के समान कार्य, व्यवहार तथा भावनाओं का आदान-प्रदान नहीं कर सकती है। परन्तु मानवीकरण अलंकार में प्रकृति को मनुष्य के समान ही व्यवहार, कार्य, तथा भावनाओं से युक्त दिखाया जाता है।

(1) कौकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।

(इस पंक्ति में कोयल को मनुष्य के समान बच्चे का दिल बहलाते दर्शाया गया है। अत: यहाँ मानवीकरण अलंकार है।)

अन्योक्ति अलंकार :- इसका संधि-विच्छेद इस प्रकार है अन्य+उक्ति अर्थात कहने वाला व्यक्ति अपनी बात किसी और उदाहरण (उक्ति) के द्वारा समझाता है। वह व्यंग्य के माध्यम से भी अपनी बात रख सकता है। इस अलंकार को अप्रस्तुत प्रशंसा के रूप भी पहचाना जाता है। इसका उदाहरण इस प्रकार है-

नहि पराग नहि मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल।

अली कली ही सो बँध्यो, आगे कौन हवाल।।



अनुप्रास :- अनुप्रास शब्द 'अनु' तथा 'प्रास' शब्दों के योग से बना है । 'अनु' का अर्थ है :- बार- बार तथा 'प्रास' का अर्थ है - वर्ण । जहाँ स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार -बार आवृत्ति होती है ,वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है । इस अलंकार में एक ही वर्ण का बार -बार प्रयोग किया जाता है । जैसे -


जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप ।
विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप । ।

यमक अलंकार क्या होता है :- यमक शब्द का अर्थ होता है – दो। जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है।

जैसे :- कनक कनक ते सौगुनी , मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराए नर , वा पाये बौराये।

श्लेष अलंकार क्या होता है :- जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।

जैसे :- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।




Answered by deepakkumarshap8pbq8
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अनुप्रास अलंकार चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही है जल थल में
यमक अलंकार कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय या खाए बौराय जग वा पाए बौराय श्लेष अलंकार रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून उपमा अलंकार हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी तुम देखी सीता मृगनैनी
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