विभिन्न दबाव समूह और राजनीतिक दल किस प्रकार सत्ता के बंटवारे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
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दबाव समूह का वर्तमान राजनीतिक व्यवस्थाओं में विशेष स्थान है। ... दबाव समूहों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि जब कोई संगठन अपने सदस्यों के हितों की पूर्ति के लिए राजनीतिक सत्ता को प्रभावित करता है और उनकी पूर्ति के लिए दबाव डालता है तो उस संगठन को 'दबाव समूह' कहते हैं।
औपचारिक दबाव समूह भारत मे निम्न प्रकार के है । 1. व्यवसाय समूह - जैसे फिक्की , एसोचेम ,एमओ इत्यादी
2. व्यापार संघ - जैसे AITUC , INTUC , HMS , CITU इत्यादि
3. खेतिहर समूह - जैसे भारतीय किसान यूनियन , ऑल इंडिया किसान सभा , भारतीय किसान सभा इत्यादि
4. छात्र संगठन - जैसे ABVP , NSUI , AISA इत्यादि
5. पेशेवर समितियां - जैसे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन , बार काँसिल ऑफ इंडिया इत्यादि
6. धार्मिक संगठन - जैसे आरएसएस , विहिप , जमात - ए - इस्लामी , शिरोमणि अकाली दल इत्यादि
7. जातीय समूह - जैसे हरिजन सेवक संघ , कायस्थ समूह , ब्राह्मण सभा , राजपूत समूह इत्यादि
8. भाषागत समूह - तमिल संघ , नागरी प्रचारिणी सभा , हिंदी साहित्य सम्मेलन इत्यादि
9. आदिवासी संघठन समूह - NSSCN , PLA , JMM , TNU इत्यादि
10. विचारधारा समूह - जैसे अम्बेडकवादी ,गांधीवादी, पर्यावरणवादी इत्यादि
सत्ता के बंटवारे की व्यवस्था को आंदोलनों, दबाव समूहों और राजनीतिक दलों द्वारा सत्ता चलाने वालों को प्रभावित करने के तरीके से भी देखा जा सकता है।
बंटवारे में महत्वपूर्ण भूमिका:
- सत्ता के लिए विभिन्न दावेदारों को चुनना एक विकल्प और स्वतंत्रता है जो नागरिकों को दी जानी चाहिए।
- इसके परिणामस्वरूप समकालीन लोकतंत्रों में विभिन्न दलों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है।
यह प्रतियोगिता यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि सत्ता एक राजनीतिक दल के हाथ में न रहे। - लंबे समय में, विभिन्न सामाजिक समूहों और विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दलों के बीच सत्ता का बंटवारा हो जाता है।
- जब चुनाव लड़ने के लिए दो या दो से अधिक दलों के बीच गठबंधन बनता है, तो सत्ता का बंटवारा प्रत्यक्ष होता है।
- यदि विभिन्न राजनीतिक दलों का यह गठबंधन चुनाव जीत जाता है, तो गठित सरकार एक गठबंधन सरकार होगी जिसके परिणामस्वरूप राजनीतिक दलों के बीच सत्ता का बंटवारा होगा।
- निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने और सरकारी समितियों में भाग लेने से, विभिन्न हित समूहों जैसे कि औद्योगिक श्रमिकों, किसानों, उद्योगपतियों, व्यापारियों और व्यापारियों की भी सरकारी सत्ता में हिस्सेदारी होगी।
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