वीभत्स रस की परिभाषा और उदहरण
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जब रक्त,मांस , मज्जा आदि घेर्णित वस्तुएँ तथा नेतिक पतन, आदि देखने में आएँ तब मन में जो ग्लानि पैदा होती है, वही वीभत्स रस का रूप ग्रहण कर लेती है। इसका स्थायी भाव जुगुप्सा होता है।
उदाहरण:-
"सिर पर बैठ्यो काग, आँख दोउ खात निकारत,
खींचत जीभहि स्यार, अतिही आनंद उर धारत,
गिद्ध जांध को खोद- खोद के मांस उकारत,
स्वान अंगुरिन काट-काट के खात विदारत।"
उदाहरण:-
"सिर पर बैठ्यो काग, आँख दोउ खात निकारत,
खींचत जीभहि स्यार, अतिही आनंद उर धारत,
गिद्ध जांध को खोद- खोद के मांस उकारत,
स्वान अंगुरिन काट-काट के खात विदारत।"
Nandinikaushik:
thnx
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जिस रस को पढ़कर हमे घृणा महसूस हो उसे वीभत्स रस कहते है
सिर पर बेठियो काग आख देऊ खात निकारत
सिर पर बेठियो काग आख देऊ खात निकारत
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