विहाँ से थोड़ी ही दूर राम ने पक्षिराज
जटायु को देखा। पंख कटे हुए। लहूलुहान।
अंतिम साँसें गिनते हुए। “हे राजकुमार!
सीता को रावण उठा ले गया है। मेरे पंख
उसी ने काटे। सीता का विलाप सुनकर मैंने
रावण को चुनौती दी। उसका रथ तोड़
दिया। सारथी और घोड़ों को मार डाला।
स्वयं रावण को घायल कर दिया। पर मैं
सीता को नहीं बचा सका। रावण उन्हें
लेकर दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर
उड़ गया," कहते-कहते जटायु ने प्राण
त्याग दिए।
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जब सीता को रावण बहरूपिया बनकर ले जाता है तो रास्ते में पक्षीराज जटायु सीता को बचाने की कोशिश करते हैं और रावण को चुनौती दे देते हैं परंतु रावण उनके दोनों पंखों को काट डालता है और इस घटना के थोड़ी देर बाद रामजी आकर उन्हें लहूलुहान पाते हैं और जटायु उनको पूरी गाथा सुनाते हैं वे राम जी को दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर जाने के लिए कहते हैं क्योंकि रावण माता सीता को उसी तरफ लेकर उड़ गया होता है और इतना कह कर जटायु अपने प्राण त्याग देता है। जटायु की बात सुनकर श्री राम और लक्ष्मण भी उसी दिशा की ओर चल पड़ते हैं।
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