व्हाट इज राइबोसोमस ?
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राइबोसोम की खोज 1955 के दशक में रोमानिया के जीववैज्ञानिक जॉर्ज पेलेड ने की थी। उन्होंने इस खोज के लिए इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग किया था जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। राइबोसोम नाम १९५८ में वैज्ञानिक रिचर्ड बी. रॉबर्ट्स ने प्रस्तावित किया था। राइबोसोम और उसके सहयोगी अणु २०वीं शताब्दी के मध्य से जीवविज्ञान के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। उन पर काफी शोध और अनुसंधान भी प्रगति पर हैं। राइबोसोम की दो उप-इकाइयां होती हैं जो एकसाथ मिलकर प्रोटीन के निर्माण में कार्यरत रहती हैं। इन दोनों उप-इकाईयों का आकार एवं गठन प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिकाओं में भिन्न-भिन्न होता है। ७ अक्टूबर, २००९ को भारतीय मूल के वैज्ञानिक वेंकटरमन रामकृष्णन को रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।[1] उन्हें राइबोसोम की कार्यप्रणाली व संरचना के उत्कृष्ट अध्ययन के लिए यह पुरस्कार संयुक्त रूप से दिया गया।[2] उनके इस शोध-कार्य से कारगर प्रतिजैविकों को विकसित करने में मदद मिलेगी। इसराइली महिला वैज्ञानिक अदा योनोथ और अमरीका के थॉमस स्टीज़ को भी संयुक्त रूप से इस सम्मान के लिए चुना गया।